हमारा देश भारत 
Hamara Desh Bharat 


हमारे देश का नाम भारतवर्ष है। इसका 'भारतवर्ष' नाम क्यों पड़ा ? इस विषय म अनेक मान्यताएँ हैं। 'ब्रह्माण्डपराण' के अनुसार, प्रजा का भरण-पोषण करने के कारण मनु भरत कहलाये और भरत द्वारा प्रतिपालित होने के कारण यह देश भारतवर्ष कहलाया। फिर यह भी कथा है कि नाभि के पौत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। यह भी आख्यान है कि दुष्यन्त के सिंहदन्तगणक पुत्र भरत के नाम पर इस वीर देश का नाम भारत पड़ा। मेरी दृष्टि में तो भारतवर्ष नाम इसके 'भारत' होने केही कारण पड़ा।

हमारे देश का अतीत बड़ा ही गौरवोज्ज्वल है। यह देश वेद-प्रणेता ऋषियों, राम, कृष्ण, वाल्मीकि, व्यास, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, तुलसीदास, कबीर, सुभाष, रवीन्द्र, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों की जन्मभूमि रहा है। यह प्राचीनकाल से जगद्गुरु रहा है। सभ्यता और संस्कति का सर्योदय इसी देश में सर्वप्रथम हुआ। हमने सबको प्रेमजल से सींचा, कभी किसी को पददलित करने का प्रयत्न नहीं किया। आज भी जब संसार में तानाशाही का नग्न नृत्य चल रहा है, हमारा जनतंत्र खिलते कमल की तरह सौरभ लुटा रहा है। संसार में जहाँ धर्म और रंग के नाम पर रक्तपात हो रहा है, हमने धर्मनिरपेक्षता का महोच्चार किया है। समस्याओं से संत्रस्त संसार आज भी समाधान के लिए हमारी ओर आँखें लगाये है। तभी तो जयशंकर प्रसाद के 'चन्द्रगुप्त' नाटक में विदेशी कन्या कार्नेलिया हमारे देश की वन्दना करती हुई कहती है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा,

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा। 

हमारा देश क्या है ? विधाता की कारीगरी का सर्वोत्तुम नमूना है। इसके उत्तर में देवात्मा हिमालय रजतकिरीट-सा खडा है, तो दक्षिण में हिन्द महासागर अपनी लोल लहरियों के अनगिन हाथों से इसके चरण पखारता है। इसकी ग्रीवा में गंगा, यमुना, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की मुक्तामालाएँ है, तो कमर में कृष्णा, कावेरी, नर्मदा जैसी नदियों की अनमोल करधनी। इसका क्षेत्रफल, 12 लाख 61 हजार 597 वर्गमील है। उत्तर से दक्षिण तक इसकी लम्बाई दो हजार मील है, तो पूरब से पश्चिम तक साढ़े अठारह सौ मील। विस्तार की दृष्टि से हमारे देश का संसार में सातवाँ स्थान है। इसकी जनसंख्या लगभग 85 करोड़ है और इस दृष्टि से संसार में इसका दूसरा स्थान है। संसार का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय ही है। हमारे देश के संविधान में चौदह भाषाएँ स्वीकृत की गयी हैं किन्तु राष्ट्रभाषा होने का सुयोग हिन्दी को प्राप्त हुआ है।

बंकिम बाबू के शब्दों में, हमारे देश की धरती शस्यश्यामला, सुजला, सुफला, तथा मलयजशीतला है। हमारा देश मानव-महासागर है, जिसमें विभिन्न जातियों को नदियाँ मिलकर एकाकार हो गयी हैं। सारे संसार में सबसे अधिक प्राचीन और विलक्षण हमारी संस्कृति है। इसलिए संसार के बड़े-से-बड़े सभ्यतावाले देश समाप्त हो गये, किन्तु हम सारे आक्रमणों का गरल पीकर भी मृत्युंजय ही बने रहे। इकबाल के शब्दों में-

यूनानो-मिखो-रोमाँ सब मिट गये जहाँ से। 

अब तक मगर है बाकी नामो-निशा हमारा ।। 

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

सदियों रहा है दुश्मन दौर-जमाँ हमारा ।। 

हमारे इस कनकशस्य एवं कमल धारण करनेवाले देश में यदाकदा दुर्भिक्ष का विभीषिका दिखलाई पड़ती है, ज्ञान की पहली ऋचा देनेवाले देश में भी निरक्षरत मिटाने का अभियान करना पड़ता है, किन्तु हम इससे कभी हतोत्साह नहीं हैं। जब

हमारे शरीर में अन्तिम श्वास का स्पन्दन है, हम इसे संवारने-सजाने की चेष्टा करते ही रहेंगे। धन्य है हम कि हमारा जन्म 'स्वर्गादपि गरीयसी' भारतभूमि में हुआ। सचमुच अखिल विश्व में हमारा देश अनुपम है-

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ।-- इकबाल