लोकतंत्र और चुनाव 
Loktantra aur Chunav


चुनाव गणतंत्रीय शासन-प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता है। जिस देश में तानाशाही शासन होता है, उस देश में अपना मत देने का अधिकार ही नहीं होता। तानाशाह की इच्छा ही सब-कुछ होती है। उसमें जनता के विचार का कोई महत्त्व नहीं होता।

अलाहम लिंकन ने गणतंत्र की परिभाषा इस प्रकार की है- गणतंत्र जनता के द्वारा जनता के लिए जनता का राज्य है। अतः गणतंत्र में यह आवश्यक है कि देश के शासन का संचालन वहाँ की जनता की इच्छा पर हो। इसके लिए निर्वाचन की पद्धति अपनायी जाती है। आज विधानसभा हो या लोकसभा, सभी के लिए प्रत्याशियों का चुनाव एकमात्र मार्ग है।

वर्तमानकाल में सभी गणतांत्रिक राज्यों ने वयस्क-मताधिकार के सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया है। इस सिद्धान्त के अनुसार देश के सभी वयस्क-चाहे वे स्त्री हों या पुरुष, धनी हों या निर्धन-मत देने के अधिकारी हैं। हाँ, संसार में आज भी कुछ देश ऐसे हैं जहाँ स्त्रियों को मत देने का अधिकार नहीं है।

हर देश ने मताधिकार-योग्य वयस्कता की एक ही उम्र नहीं मानी है। अमेरिका, इटला और फ्रांस में मताधिकार की अवस्था 21 वर्ष है; रूस, इंगलैंड, भारत और टकी में 18 वर्ष; स्विट्जरलैंड और जर्मनी में 20 वर्ष; नार्वे में 23 वर्ष; फिनलैंड में 24 वर्ष तथा हालैंड, डेनमार्क, स्पेन और जापान में 26 वर्ष है। सभी देशों में पागलों और भीषण अपराधियों को वोट देने का अधिकार नहीं होता।

मतदान मुख्यतः दो प्रकार का होता है-(1) प्रत्यक्ष और (2) अप्रलाक्ष। प्रत्यक्ष मतदान में मतदाता स्वयं मत देकर अपना प्रतिनिधि चुनता है। विधानसभाओं और लोकसभाओं के प्रतिनिधियों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान-पद्धति से होता है। अप्रत्यक्ष मतदान में सर्वप्रथम मतदाता अपने प्रतिनिधियों को चुनता है। ये चुने हुए प्रतिनिधि पुनः अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। इस प्रकार, अप्रत्यक्ष मतदान में दो बार चुनाव होता है। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव इसी अप्रत्यक्ष मतदान-पद्धति से होता है।

हमारा देश 15 अगस्त, 1947 ई. को स्वतंत्र हुआ। 26 जनवरी, 1950 ई. को यहाँ सम्पूर्णप्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की घोषणा की गयी। स्वतंत्रता के पश्चात् पहला आमचुनाव 1952 ई0 में हुआ। प्रत्येक राज्य में लगभग 75 हजार की जनसंख्या पर विधानसभाओं के लिए सदस्य चुने गये तथा लगभग 5 लाख की आबादी पर संसद के लिए सदस्य चुने गये। विधानसभाओं में जिस दल का बहुमत हुआ, उसने अपने नेता अर्थात मुख्यमंत्री का चुनाव किया। इसी तरह, संसद में जिस दल का बहुमत हुआ उसने अपने दल का प्रधानमंत्री चुना।

तबसे हमारे देश मे कई पचवर्षीय चुनाव हुए। 1952 ई. के बाद 1957 ई., 1962 ई0, 1967 ई., 1971 ई0, 1977 ई., 1980 ई0, 1984 ई0, 1989 ई. तथा 1991 ई. में आमचुनाव हुए। कई राज्यों में राष्ट्रपतिशासन के बाद मध्यावधि चुनाव भी हुए। संसार के महान गणतंत्रात्मक देशों में दो या तीन पार्टियाँ ही हैं, किन्तु। हमारे देश में पार्टियों की संख्या सैकड़ों है। चुनाव के समय तो पार्टियाँ गोबरछत्ते की तरह जन्म लेती है।

यदि हम अपने देश के चुनाव पर ध्यान दें, तो इस पद्धति के प्रति घृणा हो जाती है। जिनके पास पैसे और लाठियाँ हैं, उनसे इस चुनाव-युद्ध में जीतना बड़ा कठिन हो जाता है। चुनाव के समय वोट झौंटने के लिए तरह-तरह के हथकंडे काम में लाये जाते है। उम्मीदवार मतदाताओं की भावनाओं को उभारकर बोट ऐंठना चाहते हैं। जाति-सम्प्रदाय की भावना को उभारकर तरह-तरह की गन्दगी फैलायी जाती है। यदि इनसे भी काम न चला, तो जोर-जुल्म से मतदाताओं को मतदान केन्द्र में प्रवेश न करने देकर तथा पीठासीन पदाधिकारियों को डरा-धमकाकर जबर्दस्ती मतदान-पत्रों पर मुहर मारकर मतदान-पेटिका में डाल देते हैं। आज इसी तरह के विजेता शासन-सूत्र अपने हाथ लेकर देश में अन्याय का नग्न नृत्य कर रहे हैं। उर्दू के महाकवि इकबाल ने लिखा है-


जमहूरियत वह तजें हुकूमत है कि जिसमें

बन्दों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते। 


प्रजातंत्र में हर मनुष्य का मोल बराबर है-चाहे वह पंडित हो या मूर्ख, विचारवान हो या विचारशून्य, पैसे पर बिकनेवाला हो या पूरा ईमानदार। इसमें केवल माथा गिन लिया जाता है। किन्तु, आज यह भी स्थिति नहीं रह गयी है। प्रत्यक्ष माथा गिनने की भी जरूरत समाप्त हो रही है। अब तो केवल कागज पर ठप्पा गिनने की स्थिति होती जा रही है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, "चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है।" यदि आज की चुनाव-लीला कोई देखे, तो ज्ञात होगा कि चुनाव मनुष्य को पशु बनाने की रसायनशाला है। यदि यही स्थिति रही, तो और देशों की बात नहीं जानता, लेकिन भारत में गणतंत्र का भविष्य अवश्य अन्धकारमय है।