हमारा राष्ट्रीय झंडा 
Hamara Rashtriya Jhanda

प्रत्येक स्वाधीन राष्ट्र का एक झंडा होता है। यह उस राष्ट्र की प्रकृति और प्रगति का प्रतीक होता है। यह देश का पूज्य प्रतिनिधि होता है।

प्राचीनकाल से ही राष्ट्रीय झंडे का प्रचलन रहा है। रघु ने दिग्विजय कर अपना झंडा लहराया था। श्रीराम ने भी रावण का विनाश कर स्वर्णपुरी लंका पर अपनी पताका फहराई थी। कामदेव के 'मीनकेतन' तथा अर्जुन के 'कपिध्वज' से हम सुपरिचित हैं। स्वतंत्रता के पहले स्वाधीनता-आन्दोलन के प्रतिनिधि तिरंगे झंडे के मध्य चर्खे का चिह्न था। चर्खा भारतवर्ष के गृह-उद्योग एवं श्रमिकवर्ग का प्रतीक है। स्वाधीनता-आन्दोलन में हम राजनीतिक विचार और दल के लोग काँग्रेस-जैसे संयुक्त मोर्चे के अन्दर थे। स्वाधीनता पाने के बाद अपने-अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए सब दल काँग्रेस से अलग हो गए। तब राष्ट्र के झंडे का विचार आया, क्योंकि कांग्रेस ने अपना झंडा वही तिरंगा चखेवाला रखा। निर्णय लिया गया कि राष्ट्रीय झंडे में चख की जगह अशोकचक्र रखा जाय और अशोकस्तम्भ को राष्ट्रीय प्रतीक किया जाय। तबसे अशोकचक्रवाला झंडा ही राष्ट्रीय झंडा है।

आज बहुत कम लोग यह बतलाने में समर्थ हांगे कि इस राष्ट्रध्वज के रंगों के कल्पना सर्वप्रथम किसके मानस में उठी थी। बम्बई की महान देशसेविका श्रीमती भिकाईजी कामा ने अगस्त, 1907 ई0 में जर्मनी के स्टुटगार्ट के विशाल समाजवादी-सम्मेलन में बोलते हुए अपनी साड़ी का पल्ला फाड़कर उसे भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में फहरा दिया था। केसरिया रंग की पृष्ठभूमि में आएतारकवाले राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का विचार उन्हीं के मन में पहली बार उठा था। उसके बाद इसपर भारतवर्ष में विचार-विमर्श होता रहा और क्रमशः स्वाधीनता-आन्दोलन का चर्खावाला तिरंगा और तदनन्तर अशोकचक्रवाला तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज हमारे समक्ष आया।

संसार में जितने स्वतत्र राष्ट है, सबका अपना झंडा है। उन अंडों के रंगों और प्रतीकों के अंकन में बहुत अन्तर है। किसी के झंडे पर तीन धारियां हैं, तो किसी पर तेरह; किसी के ऊपर एक तारकचिह्न है, तो किसी के ऊपर अड़तालीस, किसी के मध्य गजराज अंकित है, तो किसी के ऊपर क्रूद्ध व्याघ्र। इन धारियों, उनके रंगों तथा उनपर चित्रित प्रतीकों के अलग-अलग अर्थ हैं। ये झंडे किसी भी देश की प्रकृति, उसकी सभ्यता और संस्कृति के स्मारक हैं।

भारतीय राष्ट्रध्वज में तीन रंग हैं-ऊपर केसरिया, मध्य में उजला तथा नीचे हरा। उजली पट्टी में गाढ़े नीले रंग का चक्र बना हुआ है, जिसमें चौबीस अरे (तीलियाँ) हैं। हमारा राष्ट्रध्वज हमारी प्रकृति और संस्कृति, हमारे संघर्ष और बलिदान, हमारी इच्छाओं और आशाओं का मूर्त रूप है। इस ध्वज निर्माण में जो तात्पर्य निहित है, वह हमारी उच्चाशयता एवं विलक्षण भावनाओं को विश्व के राष्ट्रों में अनुपम बना देता है।

हमारे ध्वज में प्रयुक्त विभिन्न रंगों तथा अंकित चक्र-चिह्न की अनेक व्याख्याएँ प्रस्तुत की गयी हैं। केसरिया रंग उत्साह और त्याग, उजला रंग सत्य और शान्ति तथा हरा रंग वीरता और प्रसन्नता का प्रतीक माना गया। डॉ. राधाकृष्णन ने हरे रंग को भौतिकवादी सभ्यता में हमारे प्रकृति-प्रेम का द्योतक माना है। एक कवि ने लिखा है-

कसरिया बल भरनेवाला, सादा है सच्चाई।

हरा रंग है हरी हमारी धरती की अंगड़ाई ।। 

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने हरे रंग को कर्म, उजले रंग को ज्ञान नथा केमरिया रंग को बलिदान और भक्ति का दिग्दर्शक माना है। इन तीन गा का मिलन क्या है- गंगा, यमुना और सरस्वती का संगमस्थल तीर्थराज प्रयाग हम इस इंडे के द्वारा समस्त संसार को मुक्ति का सन्देश देना चाहते है।

कर्मक्षेत्र हरा है अपना, ज्ञान शुभ मनमाना । 

बलि बलवती विनीत भक्ति का कल केसरिया बाना। 

इस त्रियोग के तीर्थराज में हमें स्वधर्म निभाना।

अपनी स्वतंत्रता से सबका मुक्तिमंत्र है पाना । 

इस ध्वज के मध्य जो चक्र है वह हमारी जय, विश्वमैत्री और जीवों के प्रति रुणा का प्रतीक है। यह चक्र कभी तो उथल-पुथल मचानेवाला क्रान्ति का सूरज बन जाता है और कभी शान्ति बरसानेवाला चन्द्रमा। यह विष्णु के सुदर्शन चक्र तरह आक्रमणों से हमारी रक्षा करता है। यह वह समय-चक्र है जो हमारे लक्ष्यों की सम्पूर्ति करता है-

जय-मैत्री करणा-धारामय यह यज- चक्र हमारा, 

कभी क्रान्तिका गर्वपतीहै, कभी शान्ति-शशि-शारा; 

हमें विजय का मर मिला है, इसी चक्र के द्वारा 

रक्षक पाही सुदर्शन अपना किरण कुसूम-सा प्यारा;

कान गा यह हाथ हमारे लक्ष्य क्यों न यक यहरे। 

जिस राष्ट्रध्वज के लिए लाखों नौजवानों ने कुर्बानी की तथा लाखों रमणियाँ अनाथ हुई. उसकी मर्यादा की रक्षा हमारा पुनीत कर्तव्य है। हमें इसे किस प्रकार, करो, कब और कैसे फहराना चाहिए, इसका पूरा ज्ञान होना चाहिए। राष्ट्रीय झंडे को जमीन पर बिछाना ठीक नहीं, इसे गन्दा करना उचित नहीं है। जिस किसी के लिए इसे झुकाना भी नहीं चाहिए। इसे सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराना चाहिए। रात में और आंधी में इसे उतार लेना चाहिए। जब यह फहराया जाय और राष्ट्रगीत या ध्वजवन्दना हो तो हमें स्थिर सावधान खड़ा हो जाना चाहिए। यह हमारे लिए देवतुल्य है और इसक प्रति हमारा पूज्यभाव होना चाहिए।

हमारा राष्ट्रीय झंडा सम्पूर्ण राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। यह भारत-माता के बेहपूर्ण आँचल की तरह परम पवित्र है। यह राष्ट्र का मंगलदीप है, भारत के पुंजीभूत पौरुय का परमोग्ग्चल प्रकाश है। इसे फहराते समय 'जनगण-मन-अधिनायक जय हे भारत भाग्य-विधाता' राष्ट्रगान का महोच्चार ही हमारी राष्ट्रभक्ति का मंत्र है। पर्वत की ऊँचाइयों पर मचलनेवाला, आँधियों की छातियों पर नाचनेवाला यह ध्वज राष्ट्र की आराधना का स्वर्णिम वर्ण-विन्यास है। अतः इसे हमारा शत नमन है-

राष्ट्र की आराधना के वर्ण के विन्यास, शत नमन मेरा तुम्हें !