जवाहरलाल नेहरू जीवनी 
Jawaharlal Nehru Biography

भोगों के बीच राजा जनक की तरह महायोगी यदि कोई वर्तमान समय में हुआ, तो वे थे पंडित जवाहरलाल नेहरू। अँगरेजी के सुप्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर ने लिखा है, "कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं, कुछ महत्ता प्राप्त करते हैं और कुछ व्यक्तियों पर महत्ता लाद दी जाती है।" पं0 नेहरू जन्म से ही महान थे और अपनी निरन्तर तपस्या के बल पर उस महत्ता को उन्होंने सुरक्षित रखा।

हमारे जननायक नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 ई0 को इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता पं0 मोतीलाल नेहरू बड़े नामी बैरिस्टर थे। जब रुपये का बीस सेर चावल मिलता था, पं0 मोतीलाल की मासिक आय लगभग तीस हजार थी। ऐसे प्रतिभाशाली समृद्ध पिता के इकलौते पुत्र होने का सौभाग्य पं0 नेहरू को प्राप्त हुआ था।

पं. जवाहरलालजी की शिक्षा का श्रीगणेश घर पर हआ। 15 वर्ष की उम्र में वे इंगलैण्ड के सुप्रसिद्ध स्कूल 'हैरों' में भेजे गये। दो वर्ष के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में तीन वर्ष तक विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। वकालत की परीक्षा लंदन-स्थित महाविद्यालय से पास कर 1912 ई0 में वे स्वदेश लौट आये।

पंडित नेहरू अत्युच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेश से लौटे थे। उन्हें अच्छी-से-अच्छी नौकरी मिल सकती थी, किन्तु वे सरकारी नौकरियों को लात मारकर वकालत करने लगे। वकालत से अर्थोपार्जन में समय की अधिक बरबादी होती थी, अतः उन्होंने देशसेवा के लिए वकालत भी त्याग दी। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रसेवा के लिए अर्पित किया। ऐसे समय में उन्हें एक सुयोग्य पथ-प्रदर्शक की आवश्यकता थी। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का नेतृत्व प्राप्त किया। गाँधीजी ऐसा व्यक्ति चाहते थे, जो मनसा, वाचा, कर्मणा देशसेवा में अपने को उत्सर्ग कर दे। उन्हें नेहरू के रूप में मनोनुकूल व्यक्ति प्राप्त हुआ।

गाँधीजी ने 'रॉलेट ऐक्ट' के विरोध में सत्याग्रह करने का संकल्प किया। जवाहरलालजी भी उसमें सम्मिलित होना चाहते थे, परन्तु उनके पिता नहीं चाहते थे। पडित मोतीलाल नेहरू ने गाँधीजी से सिफारिश करायी कि जवाहर जेल न जायें। गांधीजी के आदेश से जवाहरलालजी ने जेल जाना स्थगित कर दिया।

कुछ दिनों के बाद देश में बर्बर जलियाँवाला-काण्ड हुआ। निर्दोष भारतवासी संगीन की नोक पर डायर द्वारा तड़पा-तड़पाकर मारे गये। अंगरेजों के इस राक्षसी दुर्व्यवहार ने जवाहरलालजी के हृदय पर बड़ा ही गहरा आघात किया। विदेशी सरकार ने इस खूनी काण्ड के कारण भारतीयों के हृदय की धधकती ज्वाला को शान्त करने के लिए प्रिंस ऑफ वेल्स को भारत बुलाकर उसके प्रति भारतीयों से भक्तिप्रदर्शन कराने की चेष्टा की। किन्तु, प्रिंस का आना आग में और भी घी डालना था। गाँधीजी ने इसका विरोध किया और ऐलान किया कि प्रिंस का स्वागत काले झंडे से किया जाय। इलाहाबाद में पं. मोतीलाल नेहरू तथा पं0 जवाहरलाल नेहरू ने यह काम किया। बस क्या था, अँगरेज सरकार ने पिता-पुत्र को जेल की चहारदीवारी के अन्दर बन्द कर दिया। जेल में जवाहरलालजी ने श्रवणकुमार की भांति पितृभक्ति दिखलायी। वे स्वयं कमरे में झाडू लगाते थे, पिता के कपड़े साफ करते थे तथा इसी प्रकार के अनेक सेवाकार्य खुशी-खुशी करते थे। तबसे वे अनेक बार जेल गये। तरह-तरह की विपत्तियाँ झेलीं और तभी दम लिया जब अँगरेज-रावण का विनाश किया।

1947 ई0 में राष्ट्र स्वतंत्र हुआ। शताब्दियों से परतंत्र भारतीयों ने मुक्ति की सांस ली। जनता ने अपने जनप्रिय नेता को अपना प्रधानमंत्री चुना। खुशहाली का सूरज चमका। 1952, 1957, 1962 ई0 में जब-जब निर्वाचन होता रहा, नेहरूजी एकमत से देश के प्रधानमंत्री होते रहे। उन्होंने इस देश को धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए कुछ उठा न रखा।

नेहरूजी केवल भारत के ही नहीं, विश्व के नेता थे। सारे संसार में जब कोई तूफान आता था, लोगों की दृष्टि उनकी ओर टॅग जाती थी। उन्होंने समग्र संसार को पंचशील की अमोघ औषधि प्रदान की। जब वे 1961 ई0 के नवम्बर में अमेरिका -गये थे, वहाँ के प्रेसिडेंट कैनेडी ने उनका स्वागत करते हुए कहा था, "आपका स्वागत करते हुए हमारे देश को बड़ी प्रसन्नता होती है। इस देश का निर्माण उनलोगों ने किया है जिनकी कीर्तिपताका समुद्र की तरंगों पर दिखाई देती है। आप और आपके महान नेता गाँधीजी दोनों विश्वनेता हैं। संसार आपकी नीति का मान-आदर और सत्कार करने के लिए लालायित है।"

1964 ई की 27 मई को विश्व की महान भारतीय विभूति का पंचभूत-चोला उठ गया, किन्तु उनकी आत्मा हमारे उत्थान में सदा सहायक है। वे गणों के भांडार थे। उनके अपार गुणों में से एक-दो गुण भी हमारे पल्ले पड़ें, तो हम राष्ट्र के लिए बड़ा काम कर सकते हैं।

महान मुक्तिदाता, आधुनिक भारत के निर्माता, शान्ति के अग्रदूत तथा अनासक्त कर्मयोगी का वैसा समन्वित व्यक्तित्व पता नहीं, हम पुनः कब पा सकेंगे।