मेरा मनपसन्द खेल फुटबॉल
Mera Manpasand Khel Football
किताबों की कैद से ज्योंही हम छूटते हैं, तो निकल पड़ते हैं मैदान की ओर, जट घास की मखमली कालीन बिछी होती है। आसन-मुद्रा में मुड़े हुए हमारे पाय । ठठते है खेल के लिए और तब हम खेल के मैदान में दौड़ पड़ते हैं।
खेल अनेक प्रकार के हैं; जैसे-कबड्डी, क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल इत्यादि । किन्तु कबड्डी में कौन हड्डी-पसली एक कराये, क्रिकेट में कौन कई दिनों तक हार-जीत का फैसला न होने के कारण संशय के झूले पर झूलता यों ही समय बर्बाद करता रहे, हॉकी में कौन खर्च करके उसके डंडे से अपनी खोपड़ी गजी कराये; हमें तो भाता है कृष्ण-कन्हैया का प्यारा खेल गेंद, क्रीड़ा-कन्दुक, जिसे अंगरेजी में 'फुटबॉल' कहते हैं। यमुना के तट पर जब श्रीकृष्ण गोप-बालों के साथ कन्दुक-क्रीड़ा करते थे, तो उनके बीच आनन्द की जो धार उमड़ती थी, उसका क्या कहना ! सुना है, एक बार जब उनकी गेंद यमुना की मैंझधार में चली गयी, जब उसका पानी कालियनाग के विष से विषाक्त हो गया तो कन्हैया ने केवल गेंद ही नहीं निकाली, वरन उस विषधर भुजंग के फण पर चढ़कर बाँसुरी भी बजायी थी। इस खेल के बहाने आज मेरा भी मन कहता है, ओ आततायियो । तुम अपना फण फैलाओ, मैं भी तुम्हारे फण पर चढ़कर बाँसुरी बजाना चादता हूँ-'तान-तान फण व्याल, कि तुझपर मैं बाँसुरी बजाऊँ ।'
इस खेल मे दोनों आर ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी रहते हैं। मैदान में दोनों ओर 'गोल-पोस्ट' बने रहते हैं। मैदान के चारों ओर रेखाएँ खींची जाती तथा उसके सीमा-क्षेत्र के निर्धारण के लिए झंडियाँ गाड़ दी जाती हैं। ग्यारह खिलाड़ियों में एक 'गोलकीपर', दो 'बैक', तीन 'सेंटर हाफ' और पाँच 'फारवर्ड' कहलाते हैं।
जब दोनों ओर से खिलाड़ी मैदान में उतर जाते हैं और जब खेल पूरे तनाव पर आ जाता है, तो फिर कोई कहता है-'उस वक्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफिल आ जाये'; कोई नहीं चाहता कि उसकी एकाग्रता खण्डित कर दी जाय उसका मुनि-ध्यान भंग कर दिया जाय। जब मोहनबगान के खिलाडी-जैसे खिलाडी मैदान में उतरते हैं. तब इस फी से गेंद ले भागते हैं कि लगता है, मैदान में गति की एक रेखा ही खिंच गयी है। बैक ने सेंटर हाफ को पास दिया, सैटर हाफ ने फारवर्ड को और किसी ने एक गोल कर दिया। गोलकीपर उसी प्रकार ताकता रहा जैसे जनकपुरवासी ताकते रह गये राम द्वारा धनुष-भंग के अवसर पर । फिर क्या कहना ! दर्शक-समूह आनन्द से उन्मत्त हो उठता है। किसी ने टोपी उछाली, किसी ने छाता फेंका, तो किसी ने रूमाल। एक ने दूसरे को छाती से लगाया, तो तीसरे ने चौथे को कंधे पर उठा लिया।
कोई जीता, कोई हारा। हम दर्शकों को ऐसा लगता है कि कुरुक्षेत्र के मैदान में हम पांडवों की ही विजय हुई। स्वस्थ प्रतियोगिता जो सौहार्दपूर्ण सहयोग के पश्चात सफलता की जयमाल दे जाती है, उससे आभूषित होकर हम खेल के मैदान से मूंगफली फोड़ते हुए विदा लेते हैं।
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