राष्ट्रभाषा हिन्दी 
Rashtra Bhasha Hindi


भारत एक महान् एवं विशाल देश है। इसमें अनेक राज्य है। विभिन्न राज्यों की 'वाभन्न भाषाएँ हैं-बंगाल की बैंगला, असम की असमिया, उड़ीसा का उड़िया, महाराष्ट्र की मराठी, केरल की मलयालम, आंध की तेलुगू, कर्नाटक की कन्नड़ इत्यादि। किन्तु. जो भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र को एक स्नेह-सूत्र में बाँधती है, वह हिन्दी ही है।

हिन्दी अँगरेजों के शासनकाल में भी राष्ट्रभाषा थी-भले ही इसे राष्ट्रभाषा को मान्यता न मिली हो। अँगरेजी शासन को जिस प्रकार हमने सात समुन्दर पार भेजा, उसी प्रकार उनकी भाषा-दासता की निशानी-अंगरेजी को भी बाहर करना आवश्यक था। संसार के जितने भी स्वाधीन राष्ट्र हैं, उनकी अपनी राष्ट्रभाषा है; जैसे-रूस की रूसी, फ्रांस की फ्रेंच, जापान की जापानी, चीन की चीनी। इसलिए जब भारतवर्ष स्वाधीन हो गया, तब इसकी भी अपनी राष्ट्रभाषा आवश्यक थी। यह संयोग और सौभाग्य हिन्दी को प्राप्त हुआ।

हिन्दी राष्ट्रभाषा हो-इसके पक्ष में अनेक तथ्य हैं। जिस तरह, जनतांत्रिक राजनीतिक दृष्टि से बहुसंख्यक पक्ष का महत्त्व होता है, उसी प्रकार जिस भाषा के बोलनेवाले सबसे अधिक हैं, उसका महत्त्व अन्य भाषाओं की तुलना में सबसे अधिक हो जाता है। भारतवर्ष में हिन्दी बोलनेवालों की संख्या 30 से 40 करोड़ के लगभग है, दूसरी बात है कि हिन्दी बोलनेवाले और समझनेवाले देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैले हुए हैं। देश के 98 प्रतिशत लोग हिन्दी के माध्यम से विचार-विनिमय कर रहे हैं। वाणिज्य, व्यापार, तीर्थाटन इत्यादि सब हिन्दी के द्वारा सम्पन्न होते हैं। भारत के उत्तरी क्षेत्र का व्यक्ति जब सुदूर दक्षिण में रामेश्वरम् पहुँचता है, तो वह अँगरेजी की शरण नहीं लेता। उसका सारा काम हिन्दी से चल जाता है। वहाँ के पंडे हिन्दी में अच्छा बोल लेते हैं। वहाँ के कुलीन भी तमिल में बातें न कर, हिन्दी में बातें करते है भारत के जिस कोने में जाना हो, हिन्दी जानने से काम चल सकता है. किन्तु कवल बंगला, तमिल या तेलुगू जानकर काम चलाना संभव नहीं है। भारतवर्ष के बाहर भी लंका, अंडमन-निकोबार, वेस्ट इंडीज, बर्मा, ब्रिटिश गायना, अफ्रीका, मॉरिशस इत्यादि देशों में हिन्दी की सहायता से काम चल सकता है। भारतवर्ष की एकमात्र भाषा हिन्दी ही है, जिसका प्रचार भारत की सीमा के बाहर भी है।

तीसरी बात है, यह भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल है। इसकी लिपि वैज्ञानिक तथा सुगम है। हिन्दी की देवनागरी लिपि जानकर हम मराठी और। नेपाली भी पढ़ ले सकते हैं। संस्कृत की सारी परम्परा और विरासत को इसने अपने में आयत्त किया है। चौथी बात है कि यह सारे भारत की-'हिन्द' की भाषा है, किसी स्थानविशेष की नहीं। 'हिन्द' से 'हिन्दी' बनी है-बंगाल से बैंगला या असम से असमिया की तरह इसमें स्थानीय रंग नहीं है।

हिन्दी जब भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा मान ली गयी, तब मुट्ठीभर राजनीतिक स्वाथिया ने कहना आरम्भ किया कि हिन्दी को महत्त्व देने से अन्य भारतीय भाषाएँ उपेक्षित हो जाती है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानने से 'हिन्दी-साम्राज्यवाद का बालबाला हो जायगा। जो नेता हिन्दी का व्यवहार न करने के कारण लोगो को जेल भिजवाते थे, वे ही आज हिन्दी के विरोध में झंडा उठा रहे हैं।

किन्तु, उन्हें यह समझना चाहिए कि हमारे राष्ट्र-निर्माताओं ने बहुत सोच-समझकर, स्वार्थ का चश्मा लगाये बिना, हिन्दी को राष्ट्रभाषा स्वीकार किया था। महात्मा गाँधी ने कहा था--"अगर हम भारत को राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा हो सकती है। अँगरेजी अन्तरराष्ट्रीय भाषा है, लेकिन वह हमारी राष्ट्रभाषा नही हो सकती। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का कहना था-"प्रान्तीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी-प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी किसी चीज से नहीं मिल सकती। यदि हमलोगों ने तन-मन-धन से प्रयत्न किया, तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिन्दी।"

अतः देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए तथा संसार के समक्ष अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए केवल हिन्दी ही राष्ट्रभाषा हो सकती है। हिन्दी को 'राष्ट्रभाषा' कहने से कुछ लोगों को कष्ट होता है इसलिए इसे संघभाषा, सम्पर्क-भाषा, व्यवहार-भाषा, सम्बन्ध-भाषा इत्यादि नामों से अभिहित किया जाता है। किन्तु घूमकर नाक छूने की आवश्यकता नहीं। भाषा-व्यवहार के प्रादेशिक, अन्तःप्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्रों में प्रथम स्थान प्रादेशिक भाषाओं का होगा और शेष तीन क्षेत्रों में हिन्दी रहेगी। इसका अर्थ है कि हिन्दी कभी प्रादेशिक भाषाओं का स्थान नहीं ले रही है- हाँ, जिन क्षेत्रों में अगरेजी का आधिपत्य रहा, उन क्षेत्रों में हिन्दी आसन ग्रहण करेगी।

यदि हम समग्र भारतवर्ष की एकसूत्रता को ध्यान में रखें, तो राष्ट्रभाषा हिन्दी के मार्ग मे यवधान डालना अनुचित ही नहीं, देशद्रोह होगा, इसमें सन्देह नहीं। वह दिन दूर नहीं जब राष्ट्रभाषा हिन्दी के मार्ग के सारे कंटक दूर हो जायेंगे।