सत्यवादिता 
Satyavadita 


सत्य ! कितना भोला-भाला, कितना सीधा-सादा ! जो-कुछ अपनी आँखों देखा, बखान कर दिया; जो-कुछ जाना, बिना नमक-मिर्च लगाये, बोल दिया-वही सत्य है न! कितना सरल ! सत्य दृष्टि का प्रतिबिम्ब है, ज्ञान की प्रतिलिपि है, आत्मा को वाणी है। सत्यवादिता के लिए केवल निष्कपट मन चाहिए। एक झुठ के लिए हजारा झूठ बोलने पड़ते हैं, झूठ की लम्बी श्रृंखला मन में बैठानी पड़ती है। और, कहीं तारतम्य न बैठा, पोल खुला तो मुँह काला करना पड़ता है, अविश्वास का आघात सहना पड़ता है, अवमानना का कड़आ पैंट पीना पड़ता है। हाँ, सत्य बोलने और करने में भी किसी का अकारण बुरा करने की मंशा न होनी चाहिए। काने को काना कहकर पुकारना या लैंगड़े को लैंगड़े-जैसी नकल कर दिखाना, सच बोलना या करना नहीं है। इसके पीछे चिढ़ाने का इरादा है।  इसी बात को शास्त्र ने यों समझाया है-


सत्यं बूयात, प्रियं बूयात्, न बूयात् सत्यमप्रियम् । 

अर्थात्,

सच बोलो, पर प्रिय यानी भली मंशे से सच बोलो; अप्रिय यानी बुरी मंशे से सच कभी न बोलो।


संसार में जितने महान व्यक्ति हुए हैं, सबने सत्य का सहारा लिया है-सत्य की उपासना की है। 'चन्द्र टरै, सूरज टर, टरै जगत-वयवहार' के उद्घोषक राजा हरिश्चन्द्र की सत्यनिष्ठा जगद्विख्यात है। यह ठीक है कि उन्हें सत्य के मार्ग पर चलने में अनेक कठिनाइयों के दलदल में फँसना पड़ा, लेकिन उनकी कीर्ति आज चाँद की चाँदनी और सूरज की रोशनी से कम प्रकाशपूर्ण नहीं है। राजा दशरथ ने सत्य-वचन-निर्वाह के लिए अपना प्राणोत्सर्ग तक किया। महात्मा गाँधी ने सत्य की शक्ति से ही विदेशी शासन की जड़ काट दी। उनका कथन है-सत्य एक विशाल वृक्ष है, उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है, त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते हुए नजर आते हैं; उसका अन्त नहीं होता। वस्तुतः, सत्य-भाषण और सत्य-पालन के अमित फल होते हैं।

सत्य बोलने का अभ्यास बचपन से करना चाहिए। कभी-कभी झूठ बोलने से कुछ क्षणिक लाभ हो जाता है। बच्चे झूठ बोलकर माँ-बाप से पैसे झींट लेते हैं, पढ़ाई का बहाना करके सिनेमा चले जाते हैं। किन्तु यह क्षणिक लाभ उनके जीवन-विकास का मार्ग अवरुद्ध कर देता है-उनके चरित्र में छिद्र होने लगता है और रिसता हुआ चरित्र कभी महान हो नहीं सकता।

झूठ बोलनेवालों के प्रति लोगों का विश्वास उठ जाता है। उनकी उपेक्षा सर्वत्र होती है। उनकी उन्नति के द्वार बन्द हो जाते हैं। कभी-कभी उन्हें अपनी बेशकीमती जिन्दगी से भी हाथ धोना पड़ता है। क्या आपने उस लड़के की कहानी नहीं सुनी है जो 'भेड़िया आया-भेड़िया आया' कहकर लोगों को उल्लू बनाता था? जो झूठ की मूठ पकड़कर दूसरों का शिकार करते हैं, वे खुद ही शिकार हो जाते हैं।

सत्य की महिमा अपार है। बाइबिल का कथन है- यदि तुम सत्य जानते हो, तो सत्य तुम्हें मुक्त कर देगा। सत्य महान और परम शक्तिशाली है। संस्कृत की सूक्तियाँ हैं-'सत्यमेव जयते, नानृतम्' तथा 'नहि सत्यात् परो धर्मः'-'सत्य की ही विजय. होती है, असत्य की नहीं' तथा 'सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं। जॉन मेंसफील्ड की धारणा है कि सत्य की नाव से ही हम मृत्युसागर का सन्तरण कर सकते हैं।

पायथागोरस की उक्ति है कि सत्य ईश्वर की आत्मा है, किन्तु इससे आगे बढ़कर उन्होंने यह भी कहा कि Truth is God सत्य ईश्वर है। हमारे यहाँ ईश्वर को सत्य कहा गया है-सच्चिदानन्द!

सत्य सदा परिकल्पना से दृढ़-दृढ़तर होता है (Truth is always strong stronger than fiction -Byron)। यह भले ही रुखड़ा मालूम पड़े, इसमें चिकनाहट और मिठास का अभाव भले ही मालूम पड़े, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि इसकी उपेक्षा की जाय। इसपर ही संसार का सभी ज्ञान-विज्ञान आधारित है।

सारा मानव-समाज इसकी धुरी पर ही कायम है। जिस समाज में खाली झूठ-ही-झूठ का प्रचलन हो, वह समाज क्या कभी समाज रह सकेगा? वह समाज क्या कभी ज्ञान-विज्ञान की कोई बात समझ सकेगा? सत्य के पथ में भले खाइयाँ मिलें, किन्तु उस पथ से विचलित होना ठीक नहीं है। सत्य के खिलाफ बोलना ईश्वर के खिलाफ बोलना है-उसे दुःखित करना है। असत्य बोलनेवाले प्रभु के प्रिय तो होते नहीं, उलटे दण्ड के भागी बनते हैं। सत्य से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और असत्य से बढ़कर कोई पाप नहीं। गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक ही कहा है-

नहि असत्य सम पातक पुंजा। 

कबीरदासजी ने भी कहा है--

साँच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।

जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप ।। 

एवान्स का भी कहना है

Truth is the gravitation principle of the universe, by which it is supported and in which it inheres.

अर्थात्,

सत्य ही सृष्टि का गुरुत्वाकर्षण-सिद्धान्त है, जिसके द्वारा यह स्थिर है और जिसके द्वारा यह चल रहा है।

इस प्रकार, हर तरह सत्य-भाषण और सत्य-पालन श्रेयस्कर है।