अपने लक्ष्य के बारे में पिता को पत्र।


गिरिवर माध्यमिक विद्यालय,

डालटेनगंज

16-1-1992 


पूज्यवर पिताजी

सादर प्रणाम!

अभी-अभी आपका कृपापत्र प्राप्त हुआ। अभी मैंने दसवीं श्रेणी में नाम लिखाया ही है, फिर भी न मालूम क्यों, आपने मेरे लक्ष्य के बारे में जिज्ञासा की।

जिस बात को मैं आपसे कहना चाहता था, उसे आखिर आपने पूछ ही लिया। आप सोचते होंगे कि पढ़कर मैं डॉक्टर या इंजीनियर बनूंगा और रुपयों के अम्बार लगा दूँगा। परन्तु, आपसे सच्ची बात कहता हूँ कि मैं न तो इंजीनियर बनना चाहता हूँ और न डॉक्टर ही। मैं तो एक साधारण सिपाही बनना चाहता हूँ। देश का सिपाही ! भारतमाता का सिपाही!

आप कहेंगे, सिपाही की जिन्दगी तो संगीन की नोक पर टिकी होती है। कब कोई बेरहम गोली उसकी छाती को छलनी कर जाएगी, इसका कोई निश्चय नहीं। किन्तु, सच मानिए पिताजी, जिस धरती पर हम पैदा हुए, जिसकी गोद में खेल-कूदकर बड़े हुए, उससे उऋण भला कैसे हुआ जा सकता है ? सिपाहियों का जीवन दुःखों की दर्दनाक कहानी अवश्य है। किन्तु, यदि वे न रहें, तो देश में खुशियों की बहार कैसे आये? उन्हें अपने देश के लिए मर-मिटने में जो आनन्द है, वह और कहाँ? आज भारतमाता अपने ऐसे वीर नौजवान बेटों-सिपाहियों को पुकार रही है, जो सर से कफन बाँधकर अपने को न्योछावर करने को तैयार हों। पिताजी ! ऐसा अवसर मैं खोना नहीं चाहता। कहा है-

शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पे मरनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा। 

मैंने अपने अन्तःकरण की बात निवेदित कर दी । अब आप मुझे शुभाशिष दें कि मैं इसे अपने जीवन में कार्यान्वित कर सकूँ। माँ को प्रणाम तथा टुनटन को प्यार।

आपका आज्ञाकारी पुत्र 

विनय

पता-श्री विष्णुदेवकुमार,

ग्राम तथा पो0-मनिअप्पा, 

वाया-बेगुसराय-851101 

जिला-बेगूसराय