विद्यालय के पुरस्कार-वितरण-समारोह के सम्बन्ध में लिखा गया मित्र को पत्र ।


जीवन-जागृति-केन्द्र 

बक्सरिया टोला, पटना-800006

3-1-1986 


प्रिय अजय,

नमस्ते!

बहुत दिनों के बाद आज तुम्हारा पत्र मिला और लगा जैसे किसी कृष्ण ने अपने सुदामा का स्मरण किया हो। मैंने सोचा, तुम्हारे पत्र का उत्तर देने में क्यों न अपने विद्यालय में सम्पन्न पुरस्कार-वितरण-समारोह का संक्षिप्त विवरण दे डालूं।

इस वर्ष हमारे विद्यालय के पुरस्कार-वितरण समारोह के अवसर पर अपने राज्य के मुख्यमंत्री आये थे। जिन छात्रों ने परीक्षा में प्रथम एवं द्वितीय स्थान पाये थे, उन्हें पुस्तकें पुरस्कारस्वरूप दी गयीं। इसके अतिरिक्त दौड़, लम्बी कूद, ऊँची कुद, साइकिल-रेस में भी प्रथम-द्वितीय आनेवाले छोत्रों को तमगे दिये गये। इस अवसर पर विविध मनोरंजन-कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये।

अजय ! तुम तो जानते हो कि मैं खेलकूद में भाग लेता नहीं। पता नहीं क्यों, खेलकूद का लाभ जानते हुए भी उस ओर आकृष्ट नहीं हो पाता। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए मुझे पुरस्कार मिला। इस बार मैंने 'बच्चन' का एक गीत गाया था-'इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो।' सभी मेरे गायन पर मुग्ध थे। मुख्यमंत्री महोदय ने अपने विशेष अनुदान-कोष से मुझे सौ रुपये दिये। मैं क्या कहूँ, यदि तुम उस समय होते, तो तुम भी कुछ-न-कुछ पुरस्कार अवश्य देते।

गाँव से क्या तुम्हारा जी कभी ऊबता नहीं? इस बार पटना आओगे, तो तुम्हें यहाँ का रेडियो-स्टेशन दिखलाऊँगा।

तुम्हारा अभिन्न

संजय

पता-श्री अजय कुमार,

शंकर-भवन, सदानंदपुर (बेगूसराय)-851101