पशुओं में भी चेतना होती हैं 
Pashuo Me Bhi Chetna Hoti Hai


मानव और पशु दोनों ईश्वर की सृष्टि हैं, अच्छे बुरे को समझने की शक्ति भगवान ने मनुष्य को दी है । इसलिए वह अपने मन की भावनाओं को प्रकट कर सकता है । लेकिन जानवरों में बोलने की शक्ति न होने के कारण वे अपने मन की बात प्रकट नहीं कर सकते । फिर भी उनमें भावनाएँ हैं, चेतनाएँ हैं । कुत्ते अपनी कृतज्ञता बोलकर नहीं प्रकट करते, बल्कि दुम हिलाकर अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं । किसी जानवर से हम बरा बर्ताव करते हैं तो वे आँसू बहाते हैं - खामोसी की आँस । इससे हम कह सकते है कि जानवर के मन में भी भावनाए हैं और चेतनाएँ हैं । मानव जैसे जानवरों में भी मातृत्व की भावनाएँ होती हैं । भयावह बाधिन भी अपने नवजात शिशु को प्रेम से अपने जीभ से चाटती है । वैसे ही गाय अपने बछडे को । ईर्ष्या द्वेष आदि गुण भी उनमें मौजूद हैं । यह उन पशुओं के बीच होनेवाले झगडों से पता चलता है। इसमें कोई एतराज नहीं कि पशुओं में मनुष्यों जैसे गुण हैं।