वर्षा ऋतु की संध्या
Varsha Ritu ki Sandhya
वसंत यदि ऋतुराज है तो वर्षा ऋतु ऋतुओं की रानी है। वर्षा ऋतु आकर्षक दृश्यों से भरी होती। है। इस ऋतु की संध्या जैसी सुंदर और चहल-पहल भरी शायद ही किसी ऋतु की संध्या हो। चारों ओर नवजीवन और नई चेतना का संचार हो जाता है। खेत-खलिहान हरियाली से ओत-प्रोत हो जाते हैं। किसान प्रसन्नता से झूम उठते हैं, चरवाहे देर तक अपने पशुओं को चराते रहते हैं। वर्षा ऋतु की संध्या रंग-बिरंगी होने के कारण अनुपम-सी लगती है। क्षितिज का दृश्य क्षण-क्षण बदलता रहता है। अस्त होते सूर्य की लालिमा, काले बादलों के मध्य सिंदूरी लाल हो जाती है। कभी-कभी आकाश में इंद्रधनुष भी अपनी अपूर्व छटा बिखेर देता है। कभी रंग-बिरंगे आकाश को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी चित्रकार ने अपने समस्त रंगों को बिखेर दिया हो। सायंकाल होते ही मेंढकों की टर्र-टर्र सुनाई पड़ती है। वास्तव में वर्षा ऋत की संध्या रूप, गंध और संगीत का अद्भुत संगम होती है जिसे शब्दों द्वारा वर्णित नहीं किया जा सकता।
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