आँख के बदले आँख - यही सच्चा न्याय है 

Aankh ke Badle Aankh-Yahi Sacha Nyay Hai


"आँख के बदले आँख और दाँत के लिए दाँत" - इसके माने यह है कि जब कोई किसी की भलाई करे तो उसकी भलाई करे, और कोई बुराई करे तो बदले में उसकी बुराई करे, यह न्यायसंगत है। हर जीवराशी इस संसार में जब अपनी जान के लाले पड़ जाते हैं तब अपनी जान की रक्षा करना सर्वोपरी समझता है । किसी की जान खतरे में है तो अपनी जान बचाने के लिए वह सब कुछ करता है । बजाय इसके किसी दुश्मन के सामने सिर झुकाना, और उसको हमपर टूट पड़ने का अवकास देना हमारी कमज़ोरी की निशानी है।

इसलिए यह स्वाभाविक है कि किसी बुराई करनेवाले पर कोई कारवाई चलाये । अगर कोई किसी का दांत तोड दिया तो बदले में उसका दांत तोड देना ही उचित कारवाई हे । आँख के लिए आँख और दांत के लिए दांतवाला न्याय सही लगता है और बदला लेने की इस भावना को कोई खण्डन नहीं करता । सहिष्णुता एक अच्छा गुण है, बल्कि इस गुण को विपक्ष के लोग कमजोरी समझने लगेंगे और हमपर आक्रमण करेंगे । इसलिए आँख के लिए आँख और दांत के लिए दांत की नीति न्यायसंगत है।

'आँख के लिए आँख, दांत के लिए दांत वाली नीति को महात्मा ईसा के पहले की सभ्यता के पूर्व ही हम महत्व देते आ रहे थे। लेकिन महात्मा ईसा ने हमें नया तत्य सिखाया था - प्रेम का तत्य । इस तत्य को सदियों से संसार के सभी धर्माचार्य सिखाते आ रहे हैं । भारतीय संस्कृति तो ऐसी है जिसमें प्रेम और उदारता का स्थान दूसरे सद्गुणों से महत्वपूर्ण है । गांधीजी ने मजबूत अंग्रेजी शासन को भारत से समूल उखाड फेंककर अपने सबल अस्त्र प्रेम और अहिंसा की शक्ति की महत्ता सारे संसार को दिखायी।

अगर कोई हमें नुकसान करता है और हम उसकी परवाह ही नहीं करते, उसको सहन करते रहेंगे तो थोडे ही दिनों में वह अपनी गलती महसस करने लगेगा और अपनी करनी पर पछताने लगेगा । वह शमनि लगेगा और अपने को बिलकुल सुधरा हुआ पायेगा । इसके बजाय बुराई के बदले बुराई ही करेंगे तो शायद वह वही कार्य बार बार प्रतिषोध की भावना से प्रेरित होकर करता रहेगा। मनमठाव और तनाव बढ़ता जायेगा । दुश्मनी दुश्मनी को ही बढावा देती हैं । इसलिए आँख के लिए आँख की नीति छोड़कर, पडोसी को अपने जैसे प्यार करो वाली प्रेम तत्य को अपनाएँ तो गौरव पूर्ण रहेगा, और उसका फल भी अच्छा रहेगा।