स्वतंत्रता ही लक्ष्य है 
Swatantra Hi Lakshya Hai


जैसे व्यक्तिगत जीवन में संग्राम एक अभिन्न अंग है, वैसे ही देश की स्वतंत्रता के इतिहास में । संग्राम के बिना किसी भी वस्त की प्राप्ति नहीं हो सकती । आर्थिक उत्थान के लिए संग्राम हो सकते हैं, सामाजिक उन्नति के लिए संग्राम हो सकते हैं, आध्यात्मिक उन्नति के लिए संग्राम हो सकते हैं । भौतिक शक्ति के लिए संग्राम हो सकते हैं। इन संग्रामों से बढिया संग्राम है स्वतंत्रता का संग्राम । इतिहास के पन्ने स्वतंत्रता के संग्राम से और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए रचाये गये संग्राम से भरे पूरे हैं । महान लोग जैसे गांधीजी, मार्टिन लूथर किंग और विभिन्न धार्मिक नेतागण अज्ञान के खिलाफ और आत्मा की स्वतंत्रता के लिए अविरत संग्राम करते रहे । राजनैतिक उद्धार के लिए हिंसक और अहिंसक संग्राम का सहारा लिया. बहत माने हुए नेताओं ने । इन संग्रामों में जिन महान लोगों ने जान की बलि दी है, वे अमर बने हैं, यह इसलिए कि उनका लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्ति के सिवा और कुछ नहीं था। उन सब नेताओं के लिए स्वतंत्रता ही सबकुछ थी और प्रमुख लक्ष्य था।


स्वतंत्रता में भलाई ही भलाई है। आज भी हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जिन्होंने देश के लिए उत्सर्ग करनेवाले लोगों के लिए दिये जानेवाले पेन्शन को लेने से इनकार कर दिया है । उनका कहना है - जब वे महान नेताओं के साथ स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लडे तो उन्होंने न कभी पेंशन के बारे में सोचा था और न किसी पुरस्कार की कल्पना भी की थी । उनके लिए स्वतंत्रता ही सब कुछ थी । स्वतंत्रता के सिवा और कुछ लक्ष्य ही नहीं था । इससे साफ जाहिर है कि निःस्वार्थ बलिदान किसी तरह के पुरस्कार की आशा नहीं करता।


स्वतंत्रता दो तरह की हैं। पहला किस्म है व्यक्तिगत और राष्ट्र की स्वतंत्रता जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्र की स्वतंत्रता में अन्तरनिहित है। दूसरा किस्म है, आत्मा संबंधी स्वतंत्रता । स्वतंत्रता और बलिदान समानार्थी प्रतीक है। स्वतंत्रता और बलिदान की उपलब्धियों ने काल रूपी रेत पर अपने अमिट पदचिह्न छोड गये हैं । फ्लोरेन्स नाइटिंगेल महिलाओं को चिरग्रस्त रोग और गंदगी से मुक्ति दिलाने के लिए लड़ी । मार्टिन किंग लूथर नीग्रो की आत्मा के उद्धार के लिए लडे थे। गांधीजी हरिजनों की उन्नति के लिए लडे थे । इन से साफ जाहिर है कि इन महान लोगोंने इन पीडित लोगों की मुक्ति के सिवा और कुछ नहीं सोचा था।


उपर्युक्त विचार सच भी नहीं और मान्य भी नहीं । अगर स्वतंत्रता ही लक्ष्य है तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कोई उन्नति नहीं होनी चाहिए । प्रायः प्रारंभ में स्वतंत्रता के साथ साथ हलचल और कुलबुलाहट भी हो सकते हैं । और दंगे फसाद भी हो सकते हैं। इसके माने यह नहीं कि इन दंगे फसादों को मोल लेने के लिए ही अपने सर्वस्व त्याग दिया है। सचमुच स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बदनसीब लोगों के उद्धार के लिए क्रियात्मक, रचनात्मक कार्य करें, यही प्रथम कर्तव्य होना चाहिये । जिस आजादी को हमने अमूल्य बलिदान देकर पाया है उसकी रक्षा भी करनी चाहिये । हमें तो इससे भी बढ़कर कुछ महत्व पूर्ण काम करना चाहिये । वह यह है, सब को सुखमय जीवन यापन करने का अवकाश दिलाना है । स्वतंत्रता कुछ महत्वपूर्ण कार्य करनेका साधन होना चाहिये । स्वतंत्रता का महत्व तभी रहेगा जब भविष्य हमारी सन्तान को सुखमय जीवन बिताने का रास्ता खोलेगा । इसलिए स्वतंत्रता ही लक्ष्य नहीं, बल्कि उससे भी बढ़कर और कुछ है।