आँखें रगड़कर देखा तो स्वप्न नहीं 
Ankhen Ragadkar Dekha to Sapna Nahi


उस समय मैं स्कूल क्रिकेट का कप्तान था । एक विशेष क्रिकेट मेच का प्रारंभ होनेवाला था । यह मेच विशेष इसलिए था कि इंटरस्कूल चैंपियनशिप का निर्णय करनेवाला मेच था । पहले हम फील्डिंग कर रहे थे । हम 120 रन लेकर विपक्ष के सब विकेट को नष्ट कर दिया था । हमारे टीम के अच्छा खेलने की उम्मीद थी। हमेशा की तरह मैं ही पहला बल्लेबाज था जो बेटिंग करने लगा और सिर्फ 10 रन ही ले पाया । मेरे पीछे के खिलाडियों ने विशेष रूप से कुछ नहीं किया । आठ विकेट के नष्ट होने पर 85 रन ही ले चुके थे। बहुत कम विक्केट ही थे और बहुत मशहूर बोलर्स के साथ मुठभेड हो रही थी। हमारी हार सुनिश्चित थी। फिर भी यह कहना मुश्किल था कि क्या होगा। इस इंतजारी से ऊबकर मैं खेल का मैदान छोडकर आ गया। आधे घण्टे के बाद टीम का एक साथी जोर से चिल्लाते हुए आया। जब उसने कहा कि हमने दो विकट के साथ खेल जीत लिया है तो मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका । हमारे टीम के खिलाडियों ने बेटिंग अच्छा किया । जब मैने आँखे रगडकर देखा तो मैंने पाया, मै जीवित हूँ, वह स्वप्न नहीं।