जब मैं सफल हआ 
Jab Mein Safal Hua


मैं एक मजेदार उपन्यास पढ़ रहा था तो मेरे भाई की चीख ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। उसने चिल्लाया - "आखिर मैं सफल हुआ । तुरन्त उसके इस तरह आनन्द से चिल्लाने का मतलब मेरी समझ में नहीं आया । लेकिन जब मैंने उसके हाथ में एक पत्रिका देखी तो उसके आनन्द का रहस्यमुझे मालूम हुआ । यह तो उसकी सफलता की कहानी है । अब वह सत्रह साल का है । बचपन से उसको लिखने की सनक थी । जब वह बच्चा था, कोयला हाथ में लेकर दीवारों पर लकीर खींचता और कहता वह पेंटिंग कर रहा है । और कुछ बडा हुआ तो घर-आंगन उसके लिखे कागज़ के टुकडों से छिड़का हुआ था। उस समय वह एक लेखक के रूप में विकास पा रहा था। मां बाप से झिड़कियाँ मिलती थीं। मार भी मिलती थीं | बेवकूफ़ की उपाधि भी मिलें ये ही पुरस्कार मिले थे । फिर भी उसने साहस नहीं छोडा । जब उसकी पहली कहानी उसके स्कूल की पत्रिका में छपी तो वह फूला न समाया और वही इस धरती का पहला संतुष्ट व्यक्ति था। उसके बाद भी उसने अपना परिश्रम जारी रखा। यद्यपि उसे सफलता नहीं मिली, उसने धीरज नहीं छोडा । एक दिन उसने कहा कि उसने अपनी एक कहानी एक मशहर पत्रिका की कहानी प्रतियोगिता में भेजी है। घर के लोगों की झिडकियों की बोछार की उसने परवाह नहीं की और साथ साथ मेरी झिड़कियाँ भी उसे खानी पडी। उसके हाथ में जो पत्रिका थी उसमें कहानी प्रतियोगिता का फल प्रकाशित था। पहला पुरस्कार विजेता - पांच सौ रुपये । मैंने मन में कहा "उसके आनन्द में चिल्लाना न्याय संगत है। क्योंकि मैं अपने भाई और उसके परिश्रम का प्रशंसक हूँ ।