भारत में अंग्रेजी का स्थान
Bharat me English ka Sthan


हमारे संविधान ने चौदह भाषाओं को राजभाषा घोषित की है । इसके पूर्व जब से आग्रेजी ने भारत में अपना सत्ता जमाया तब से अंग्रजी ही सरकार की भाषा रही है । स्वयं हमारा संविधान भी अंग्रेजी में लिखा गया है और अंग्रेजी एक संपर्क की भाषा भी मानी गयी है । यद्यापि अंग्रेजी विदेशी भाषा है, कुछ लोग अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा के स्तर देने की मांग करते हैं। यह इसलिए कि बहुत से लोग अपनी मातृभाषा की बनिस्बत अंग्रेजी अच्छा बोलते लिखते और समझते हैं। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में जोर देते हैं, क्योंकि हिन्दी ज्यादातर लोगों से बोली जानेवाली भाषा है। इसलिए "भारत में हिन्दी के स्थान पर विचार विमर्श करना आवश्यक है।

हिन्दी को राष्ट्रभाष घोषित करने के विषय में दक्षिण में बहुत विरोध चलता है । उनका कहना है कि दक्षिण राज्यों में हिन्दी भाषी बहुत कम हैं और दक्षिण के ज्यादातर निवासी अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता भी हैं। इन भाषाओं की कमियों और खूबियों की चर्चा में न पड़कर, और राजभाषा बनाने की काबिलियत की भी चर्चा में पडे बिना , इस चर्चा में पड़ना बेहतर होगा कि भारत में अंग्रेज़ी के होने से क्या क्या लाभ हो सकते हैं।


अंग्रेजी विश्व की भाषा है। पाश्चात्य देशों में वैज्ञानिक या तकनीकी जानकारी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है । इन सब की ज्यादातर पुस्तकें अग्रेजी में ही लिखी जाती है और पढी जाती हैं। अपनी अपनी मातृभाषा के माध्यम से वैज्ञानिक खोज करनेवाले देश अंत में अपनी खोज का फल अंग्रेजी में ही प्रकाशित करते हैं । वे सब मान चुके हैं कि अंग्रेजी के माध्यम से ही सारे विश्व को अपनी खोज का फल मालम करा सकते हैं । इस से ही अंग्रेजी की अवश्यकता समझ सकते हैं।


भारत में अहिन्दी भाषी ही हिन्दी का विरोध करते हैं । यह इसलिए कि उन्हें हिन्दी, स्थानीय भाषा और अंग्रेजी, कुल मिलाकर तीन भाषाएँ पढ़नी पड़ती हैं जब कि हिन्दी भाषियों को सिर्फ हिन्दी और अंग्रेजी दो भाषएँ पढ़नी पड़ती हैं । इसलिए इस विवादास्पद विषय से छट्टी पाने के लिए, अच्छे विचार विनिमय के माध्यम के ख्याल से, जब तक अहिन्दी भाषी हिन्दी सीखने को तैयार होंगे तब तक के लिए अंग्रेजी आम भाषा याने जन संपर्क की भाषा रहे, यही अच्छा है।