स्वास्थ्य ही धन है
Swasthya hi Dhan Hai


संतुष्ट और सुविधाजनक जीवन के लिए हर एक को कुछ वस्तुओं की आवश्यकता होती है। ऐसी आवश्यक वस्तुओं में खाना कपड़े और मकान बहुत मुख्य हैं जिनके बिना हम जीवित नहीं रह सकते । ये वस्तुएँ उपलब्ध हों तो संतोष अपने आप अवश्य ही आ जायेगा । लेकिन मनुष्य बहुतसारी और चीजें पाना चाहता है, जो उसके ख्याल में, मनुष्य के संतोष के लिए आवश्यक है। आजकल बहुत से लोगों की अनुभूति है कि उनके संतोष के लिए टी.वी अपने जीवन का एक खास अंग है । जो टी.वी. नहीं खरीद सकते उनके लिए रेडियो ट्रान्सिस्टर की आवश्यकता है । आर्थिक दृष्टि से देखें तो ये वस्तुएँ विलासिता की वस्तुएँ मानी जायेंगी, न कि सख्त जरूरत की चीजें । इसलिए अब सवाल यह है, मनुष्य को संतोष प्रदान करनेवाली वस्तुएँ सख्त ज़रूरत की वस्तुएँ है या विलासिता की चीजें ।


धन या ऐश्वर के बिना हम संतष्ट नहीं रह सकते । सिर्फ धन हमें संतोष का वादा नहीं कर सकता । एक प्रसिद्ध कहावत हैं स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क" । इसका अर्थ है - शरीर स्वस्थ हो तो दिमाग के विकास होने की संभावना है। तमिल भाषा में एक कहावत है, जिसका अर्थ है - अगर दीवार हो तो हम चित्र बना सकते हैं। अगर किसी में स्वास्थ्य की कमी है तो यह एकतरफ़ा विकास है।


स्वास्थ्या सादे जीवन की देन है। सादे भोजन खाने की आदत और सादे रहन-सहन के तौर तरीके हमें रोग मोल लेने से बचाते हैं। अच्छा व सादा भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है । ऐसे ही कपडे भी सादे होने चाहिये । पाश्चात्य ढंग की पोशक, दिखावे के लिए भले ही हों, पर हमारी जलवायु को जंचता नहीं, अपने यहाँ की पोशाक में तो कोई आराम से रह सकता है, असुविधा की बात नहीं होती और अस्वस्थ होने का डर भी नहीं होता । उसी तरह हमारे रहने के मकान भी आलीशान होने की जरूरत नहीं, बलिक हवादार और साफ सुथरा होना चाहिये । ताजी हवा के आने से और मकान हवादार होने से हमारे अच्छे स्वस्थ्य के लिए अच्छा वातावरण मिलता है । इस प्रकार खाना कपडे और मकान सब सादे हों तो स्वास्थ्य के अच्छे रहने की संभावना है। अगर स्वास्थ्य अच्छा रह गया तो वह स्वास्थ्य ही दूसरी भलाइयों की ओर अपने आप ले जायेगा । अतः स्वास्थ्य ही सब से बडा ऐश्वर्य है, जिसे हर एक पाना चाहता है।