चरित्र भाग्य की बात है 
Charitra Bhagya ki Baat Hai


जय और पराजय हरएक के जीवन का अभिन्न अंग है । एक व्यक्ति को कुछ कार्यों में सफलता मिलती हैं और कुछ कार्यों में असफलता मिलती हैं । जब कोई किसी काम में असफल होता है, अपनी असफलता के लिए भाग्य को दोषी ठहराता है और कहता है कि उसने अपने परिश्रम में कोई कमी नहीं रखी थी और अपनी असफलता का कारण अपनी दक्षता की कमी नहीं मानते । वे कहेंगे कि उनकी असफलता के कारण उनके भाग्य की बात हैं । जो किसान अपने खेत में अच्छा खासा परिश्रम नहीं करता और अच्छे औजारों का उपयोग नहीं करता, उसके खेत में अच्छी फसल भी नहीं होती । ऐसी अवस्था में वह किसान अपने भाग्य को ही दोषी ठहराता है । कोई अपने चरित्र के बल पर अपने भाग्य को ही बदल सकता है। अगर किसी का चरित्र अच्छा हो तो अपने अथक परिश्रम से असफलता को सफलता में बदल सकता है। मार्कण्डेय की कहानी एक अच्छा उदाहरण है । चरित्र हर एक का कोष है। अगर कोई चरित्रवान है तो उससे हर काम संभव है । इसलिए चरित्र भाग्य की बात है न कि भाग्य ही चरित्र है।