चिडियाघर की मेरी यात्रा
Chidiyaghar ki Meri Yatra


“खेल के बिना काम ही करते रहना जेक को निरुत्साह कर देता है।" - यह एक अंग्रेजी कहावत है। इस तथ्य से प्रेरित होकर हमारे स्कल के प्रिन्सिपल ने पिछले सप्ताह चिडियाघर जाने का प्रबंध किया । इस की सूचना मात्र ने हरएक छात्र के मन में आनन्द की लहर फैला दी । और वह भी इन्तज़ारी का आनन्द । हम में से किसी ने कभी चिडियाघर नहीं देखा था । अगर कभी किसने कोई जानवर देखा है तो अपने अपने घरों में कुत्ते, विल्ली और गाय, या किसीने कोई चिडिया देखी है तो वे चिडियाँ जिन्हें रोज हम आकाश में उडती देखते हैं । इसलिए हम उन शेर और बाधों को देखने की घडी की इन्तजीर में थे जिन्हें हमने सिर्फ तस्वीर में ही देखे थे या फिल्मों में देखे थे । जानवरों को आमने सामने देखने का सोभाग्य और कम से कम एक दिन के लिए पाठय पुस्तकों से छुट्टी की बात हमारे लिए हर्ष की बात थी।


सब वर्ग के छात्र और छात्राओं और अध्यापक और अध्यापिकाओं को मिलाकर हम एक सौ पचास के लगभग थे। स्कूल के आंगन में सब लोग सबह साढ़े पांच बजे इकट्ठे हुए । तीन बस तैनात हुए थे। सभी बस निश्चित समय पर रवाना हुई। अध्यापकों ने हमें गाने बजाने चीखने चिल्लाने की पूरी आजादी दी थी। हमारे चीखने चिल्लाने, गाने बजाने के गुंजन के बीच हमारी बस चल निकलीं।


हम चिडियाघर आ पहुँचे । एक 'गाइड' का इंतजाम किया गया । गाइड हम सब को ले चला । अध्यापकों ने बताया कि गाइड ले जायेगा। सब से पहले बन्दर के पिंजरे ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया । हमारे एक अध्यापक महोदय ने हँसी मजाक में कहा कि हममें से किसी को हम पिंजरे के अन्दर देख सकते हैं । इस मजाक की हमने कोई परवाह नहीं की क्योंकि हमने मजाक को मजाक ही समझकर सबने हँसदी । हम बन्दरों की प्रौढता और प्राचीनता की जानकारी में उत्सुकता दिखा रहे थे, न कि बन्दरों से हमारी तुलना करने में । उन बन्दरों में से हमारा ध्यान आकर्षित करनेवाला था - लंगूर, पुराने जमाने के आदमी जैसा था। उसे हम एक बन्दर के रूप में कल्पना भी नहीं कर सकते थे । वहाँ से हम उस जगह चले जहाँ हाथी थे, हिरण थे, शेर इधर उधर उछल हरे थे । बाघ गुस्से में गुरी रहा था, हिपोपोटामस अपने भारी शरीर को लेकर पानी में डुबकी ले रहा था । जब हम हिपोपोटामस को देख रहे थे, तब हमारी नजर हमारी डाइंग टीचर पर पडी । वैसे ही कुछ लड़कोंलड़कों की व्यंग्य भरी नज़रे भी पड़ी। लेकिन हमारी ड्राइंग टीचर हँसी में मुस्कुरा दीं।


दोपहर के खाने और आराम के बाद फिर हम चिडियों के विभाग में चले। हमने भिन्न भिन्न रंगोंवाली चिड़ियाँ देखीं । सर्यास्त का समय हो रहा था। भारी मन से हम वहाँ से चल निकले । हम इस यात्रा को कभी नहीं भूल सकते ।