सांप्रदायिक एकता की आवश्यकता 
Sampradayik Ekta ki Avashyakta


हमारे देश के सामने, आजकल की ज्वलन्त समस्या है – “भारत की अखण्डता” । हर कोई इसी का राग आलापता रहता है। असल में इस दिशा में कोई भी काम नहीं हुआ है। जो भारत की अखण्डता का नारा लगाते हैं मंचों से भाषण देते हैं, वे उन्हें कार्यान्वित करने की, व्यवहार में लाने की कोशिश नहीं करते । 'भारत की एकता को, 'भारत की अखण्डता को हम बहुत तरीकों से बनाये रख सकते हैं। उनमें से एक “सांप्रदायिक एकता” की पुष्टि करना ।


आजकल देश के हर भाग में सांप्रदायिक दंगे उभरती नजर आ रही हैं। गैर-सामाजिक व्यक्ति, जिनमें बेरहम और बेदर्द राजनीतिज्ञ भी शामिल है, सामाजिक द्वेष और वैमनस्यता को उभारकर दंगे फ़साद खडा करके अपनी मुनाफाखोरी पूरी कर लेना चाहते हैं। वे न तो दूसरे लोगों की जान माल की परवाह नहीं करते, न देश के गौरव और भलाई की परवाह । अगर किसी की परवाह है तो अपने ही की परवाह, अपनी ही भलाई की परवाह, अपनी उन्नति की परवाह ।


उदाहरण के लिए मिल के मजदूरों को लें। उनकी बहुत सी कठिनाइयाँ हैं। उनके वेतन संतोषजनक नहीं, बोनस भी उचित मात्रा में नहीं मिलता है । उनको जो सुविधाएँ दी जाती हैं वह काफी नहीं । व्यवस्थापकों के ध्यान अपनी और अपनी असुविधाओं की ओर आकृष्ट करने के लिए हड़ताल चलाते हैं। उनके विचार अच्छे होने पर भी कुछ खुदगर्जी लोग इस हड़ताल के असली कारण को भुलाकर व्यवस्थापकों के इस तरह के व्यवहार के पीछे सामाजिक या सांप्रदायिक द्वेष होने का भ्रम पैदा करते हैं । इन मजदूरों और कर्मचारियों के बीच में भी सामाजिक’ या सांप्रदायिक द्वेष के बीज बो देते हैं। अंत में मजदरों व कर्मचारियों और व्यवस्थापकों के बीच का झगडा बन्द हो जायेगा, लेकिन एक समाज या कौम या संप्रदाय और दूसरे समाज या कौम या संप्रदाय का फसाद बना रहेगा।


यह सामाजिक या साप्रदायिक द्वेष कहाँ ले जायेगा इस पर कोई भी अपना ध्यान नहीं देता । हमारा देश जटिल आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के बीच से गुजर रहा है । हम ऐसे पडोसियों से भी घिरे हुए हैं जो हर घडी हम पर टूट पड़ने केलिये मुस्तैद रहते हैं । ऐसी अवस्था में अगर हम सामाजिक या साप्रादायिक द्वेष को न छोडेंगे. अपने को परे के पूरे भारती न समझें तो हम जरूर दश्मनों के हाथों आ जायेंगे। हमारा जीवन एक भयावह स्वप्न सा बन जायेगा। अगर हम अपनी भावी सन्तान के लिए शांतिपूर्ण जीवन चाहते तो आज हर एक भारती को सामाजिक एवं सांप्रदायिक एकता की आवश्यकता महसूस करना परमावश्यक है और उसके लिए कठिन परिश्रम करना चाहिये ।