पशुओं पर अत्याचार 
Pashuo Par Atyachar


पशु भी राष्ट्र की संपत्ति का अंश है । वे हमें भगवान की दी हुई देन हैं। इसलिए उनकी रक्षा करना व पालन पोषण करना हमारा परम पावन कर्तव्य है । ये पश कई तरह से हमारे काम आते हैं । गाय, बैल घोडे, कुत्ते आदि मानव के लिए किसी न किसी तरह काम आते हैं । वन्य पश हमारे काम नहीं आते, ऐसा नहीं । वे भी बहुधा बहुत से कामों में आते हैं। ये वन्य पशु वनों को मनुष्य के हाथों से अंधाधुष बरबादी होने से बचाते हैं । फिर भी हम देखते हैं कि हमेशा ऐसी स्पर्धा में दुबले पतले बैल गगन चुंबी घास की घटरियों से लदी गाडियों, तेल के पीपों या धान से भरी गाडियों को खींचना मामूली दुश्य हैं। गाडी तेजी से चलाने के लिए चढाव पर गाडी को उभारने के लिए, बैल को उकसाने के हेतु उसको बेरहमी से मारना तो रोज के आम दुश्य होते हैं। ऐसे मौके पर आदमी यह भूल जाता है कि अपनी ही जैसी भगवान की दूसरी सष्टि से, सह-जीवी से वह काम ले रहा है । चूंकि वह अपनी मंजिल पर जल्दी पहुँचना चाहता है और जल्दी ही अधिक पैसे कमाना चाहता है, इसलिए उसकी यह हिंसावृत्ति है । उन पशुओं के दर्द की, मूक यातनाओं की वह कभी परवाह ही नहीं करता। जिस पाल्तू गाय से हम मनों सेरों दूध पी चुके हैं उसी गाय को उसकी प्रौढावस्था में बेरहमी से कसाई के हाथों बेच देते हैं । यह तो सोने के अण्डे देनेवाले बतख को जान से मार डालने के बराबर है। ऐसे बहुत से उदाहरण हम दे सकते हैं।


ऐसी हिंसात्मक प्रवृत्ति को बन्द करने के लिए एस.पी.सी.ए.(द सोसाइटी फॉर प्रिवेन्सन आफ क्रुअलटी ट अनिमल्स) जैसी संस्थाएँ हैं । ऐसी संस्थाएँ सुचारू रूप से काम नहीं कर सकती क्योकि ये संस्थाएँ सिर्फ जनता को सलाह दे सकती हैं । वह तो बड़ी मुश्किल से ऐसे गुनहगारों को अदालत द्वारा दण्ड दिलाने के लिए मदद कर सकती हैं । पशुओंकी भलाई के लिए पश शरणालय होते हैं और बीमार पशओं की चिकित्सा के लिए अस्पताल भी हैं । सरकार भी उचित कारवाई द्वारा पशुओं पर अत्याचार को रोकने की कोशिश कर रही है। कानून बनाने से या कानून का भय दिखाने से इस दिशा में सफलता नहीं मिल सकती । लेकिन यह आवश्यक है कि मनुष्य यह अनुभव करे कि पश हमारे उपकारी जीव हैं, और उन्हे हमारी तरफ से 'अहिंसा की देन परमावश्यक है । मनुष्य ही पशुओं को अत्याचार से बचा सकता है, न कि कानून ।