मेरी प्रिय पुस्तक 
Meri Priya Pustak


पुस्तकें हर एक का सर्वप्रिय, सर्वोत्तम साथी है । मानवीय साथी विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार से प्रक्रिया करता है । लेकिन पुस्तकें मनुष्य के अभिन्न और अचूक मित्र होती हैं। पुस्तकें पढ़ते समय कोई अपने मानसिक कष्ट तक भूल सकता है।


कोई अपने मन पसन्द या प्रिय लेखक की पुस्तकें पढ़ने में मशगूल हो और उस लेखक की संगति में सुहाने समय का अनुभव करे तो वह बेशक अपने मन मस्तिष्क के कष्टों को अवश्य भूल जाता है। पुस्तकें पढने का आनन्द तभी कोई प्राप्त कर सकता है जब वह पुस्तकें हाथ में लेकर पढने बैठ जाय । उस पुस्तक के बारे में किसी का बयान या भाषण सुनने से वैसा आनन्द तो नहीं मिलता। ऐसी पुस्तकें भी हैं जिनके बार बार पढने पर भी उसकी रुचि कम नहीं होती । ऐसा अथाह आनन्द देनेवाली । अनेक पुस्तकों में से एक है मेरे मनपसन्द पुस्तक, गांधीजी से लिखी गयी पस्तक – “मै एक्सपेरिमेन्ट विद ट्रूथ" ।


मैंने उस पुस्तक को कई बार पढ़ा है। कितनी बार, मुझे पता नहीं । मैं सातवीं कक्षा में पढ़ रहा था, तभी इसु पुस्तक से मेरा परिचय हुआ था । हमारे प्रधान अध्यापक एक अनुशासन प्रिय सज्जन थे । वे अतिरिक्त पुस्तकें पढ़ने पर जोर देते थे। वे चाहते थे कि हरएक विद्यार्थी एक पखवारे में कम से कम एक अतिरिक्त पुस्तक लाजमी तौर पर पुस्तकालय से लेकर पढ़े। पहले हम इसे कठोरता समझते थे, लेकिन आगे चलकर यही हमें एक वरदान साबित हुआ है। अब मैं मानता हूँ कि अगर हमारे प्रधानाध्यापक की ऐसी आज्ञा नहीं होती तो उन महान लेखकों की संगति पाने का सौभाग्य प्राप्त ही नहीं हुआ होता । अन्होंने ही सर्वप्रथम मझे गांधी की लिखी पस्तकों के वाचन करने का सुझाव दिया।


पुस्तक के प्रारंभिक अनुच्छेदों में गांधीजी के बचपन के जीवन पर प्रकाश डालते हैं। गांधी जी का अपने चरित्र की कमजोरियों को कबूल करना, शरु की असफलता को असफलता मान लेना आदि श्रेष्ट गणों ने मुझपर अमिट प्रभाव डाल दिये थे । हरिश्चन्द्र का नाटक देखने पर गांधीजी में सत्य के प्रति जो अमूल्य प्रतिष्ठा बढी .. गांधीजी के मुँह से बयान सुनकर मेरे मन में गहरा असर हुआ। इस पुस्तक में ऐसी घटनाओं की कभी नहीं जिनमें कई बार गांधीजी में मानसिक संग्राम चलते रहे और अंततः ईश्वर की सहायता से गांधीजी ने उन सब पर सफलता पायी । यह पस्तक, मेरी प्रिय पुस्तक इसलिए है कि इसकी शैली सरल और रोचक है। शब्द चयन, सोच समझकर आवश्यकता के अनुसार किया गया है । इसकी अनुभूति शुरू में मुझे नहीं हुई थी, बल्कि जब वर्ष बीतते गये, उनके लेखन शैली का आनन्द ले सकता था। ये सब बातें और घटनाएँ मेरे दिमाग पर अमिट छाप छोड़े हैं। पता नहीं कितनी बार इस अमूल्य भण्डार का वाचन भविष्य में करूंगा।