मनुष्य स्वार्थी है 
Manushya Swarthi Hai


मानव भले बुरे का सम्मिश्रण है । शिक्षा ने मानव को बहुत सी सुविधाएं प्रदान की हैं। लेकिन वे सुविधाएँ विज्ञानकी गरिमा द्वारा मनुष्य में बहुत से अवगुण पैदा कर चुकी हैं। मनुष्य को बिलकुल स्वार्थी बना डाला है । आधुनिक आविष्कारों ने सुविधापूर्वक जीवन बिताने की आकांक्षा को मनुष्य में भड़का दिया है । मनुष्य एक सुविधापूर्ण और आरामदायक जीवन की आवश्यकता का अनुभव करता है । इसलिए मनुष्य पैसे, जमीन जायदाद आदि संपत्ति के पीछे अविराम दौड़ लगाता रहता है।


इस तरह संपत्ति के पीछे पड़कर मनुष्य अपनी एक ही पहलू के बारे में सोचता है । वह दूसरों की असुविधाया कष्ट के बारे में नहीं सोचता । इस खदगर्जी ने गरीबों को चूसना शुरु कर दिया, जिसे पंजिवाद सख्त खण्डन करता है । “दान घर से शुरु होता है - इस आदर्श कहावत का अनुचित लभ उठाया जाता है। मनुष्य को जब तक इच्छित वस्त मिलती है तब तक वह अपने बारे में ही सोचता है, और किसी भी बात की परवाह नहीं करता । स्वार्थ ही मनुष्य के हर कार्य कलाप का आधार बनता है।


अगर दूसरे पक्ष पर विचार करें तो दुखी और कठोर आलोचक ही यह कहने का साहस करेंगे कि मनुष्य स्वार्थी है । भगवान ने मनुष्य को और सृष्टियों से भी ऊँचे स्तर पर रखा है। मनुष्य दूसरों के वास्ते अपनी भलाई की बलि चढ़ाने का आदि है। संसार का हर धर्म और हर सामाजिक संस्था ऐसे असंख्य महात्माओं के उदाहरणों से भरापूरा है, जिन्होंने दूसरों की भलाई के लिए अपने सब कुछ त्याग दिये हैं। आम जनता में, जैसे कि कुछ लोग कहते हैं, स्वार्थीलोग बहुत तो नहीं मिलते ।


हमारे ही घर की बात लें तो, ऐसे कोई माँ या बाप नहीं जो अपने बच्चों को दिये बिना सब खाना अपने लिए रख लेता हो। अगर माँ बाप कठिन परिश्रम करते तो अपनी संतान के लिए ही । ऐसे भी कछ लोग हैं जो दलितों के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व त्याग चुके हैं । बहुत से अनाथालय खोले गये हैं, गरीबो के लेए शरणालय बने हैं, वयोवृद्धों की देखरेख के लिए घर बने हैं। बहुत से संपन्न धर के लोग समाज सेवा के लिए अपना अमुल्य समय और ऐश्वर्य लगा चुके हैं। अगर मनुष्य खास तौर पर स्वार्थी है तो ऐसे लोगों का, (स्वार्थियों का) अभाव सा ही रहेगा।