विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो
Vidyalayao me Shiksha ka Madhya Matribhasha ho 


ऐसा कोई नहीं जो अपनी माता की निन्दा करता हो या माता को सदा के लेए परित्याग करता हो । माँ अपनी संतान की चाहे प्रशंसा में बहुत कहे या निन्दा करे, फिर भिी माता अपनी संतान को कभी तिरस्कार नहीं करती । ऐसे ही यह एक मूर्खता की बात होगी जब कोई कहता है कि मातृभाषा हमारे विश्व विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम न हो । दो सौ वर्ष के विदेशी शासन के अधीन दासता के बाद भी, अंग्रेजी के अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने पर भी, यह आवश्यक नहीं कि अंग्रेजी विश्व विद्यालय का माध्यम रहे।


यह इसलिए कि आज हमारे यहाँ करोडों लोग ऐसे हैं जो ठीक तरह से अंग्रेजी बोल नहीं सकते और लिख नहीं सकते । पढे लिखों लोगों में बहुत से लोग ऐसे हैं जो अंग्रेजी की बारीकी प्रयोगों को देखकर हक्का बक्का रह जाते हैं। अलावा इसके, जो विदेश में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं या जो देश विदेश में भ्रमण करना चाहते हैं, उनको छोड़कर अंग्रेजी बोलने या लिखने वाले बहुत कम हैं । बहुतायत लोगों के लिए विषय ज्ञान ही पर्याप्त हैं । वह तो मातृभाषा के माध्यम से ही सुचारू रूप से प्राप्त किया जा सकता है । इस तरह मातृभाषा अपना महत्वपूर्ण स्थान को प्राप्त कर सकता है।


कुछ लोगों का कहना है और उनका मत भी है - विज्ञान और टेक्नोलजी थोडे ही समय में बडी भारी उन्नति कर चकी है। ऐसा कोई एक दिन नहीं गुजरता जिसमें कुछ न कुछ नया आविष्कार नहीं हुआ हो औरन कोई नई खोज हुई हो। बहुत पिछडे हुए देशों में ज्ञान का विस्तार दिन दूना रात चौगुना हो रहा है । बहुतसारे देश अपनी खोज और आविष्कारों को अंग्रेजी के माध्यम से ही विश्व के अन्य देशों को मालूम कराया है। हमारे देश में भी कई भाषा के उन्मादक हैं जो मातृभाषा को ही पढ़ाई का माध्यम बनाने पर जोर देते हैं।


बेशक मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाने से छात्र को ज्ञान की प्राप्ति हो सकती हैं, लेकिन जब उन्हें पढी हुई बातों को व्यक्त करने की आवश्यकता पड़ती है या अपनी खोज खिये हुए विषय को विश्व के दूसरे देशों के सामने पेश करने का अवसर आता, तब वे मुसीबत में पड़ जायेंगे । इसके अलावा सिर्फ मातृभाषा पढ़ने से वैज्ञानिक ज्ञान की वृद्धि में विश्व के दूसरे देशों के साथ हम होड़ नहीं कर सकते ।


हमारे देश के सारे विश्व विद्यालय वहाँ की मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाये - यह कहना बेकर है और तंगदिली है। ऐसी हालत में हमारे देश में विश्यविद्यालय के माध्यम मातृभाषा को मानें तो भी बहुत सी भाषाओं के होने के कारण ज्ञान के आदान प्रदान में बाधा जरूर होगी।