नम्रता का मूल्य 
Namrata ka Mulya


कहा जाता है कि नम्रता राजा महाराजाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है । यह आम जनता का भी जन्मसिद्ध अधिकार है । जीवन में हमारा संतोष, दूसरों के साथ हमारा संबंध, उनसे बरताव आदि आदान प्रदानके ढंग पर निर्भर रहता है । आधुनिक युग में ऊँच नीच की भावना, अहं और अभिमान ने, दूसरों से फायदा प्राप्त करने के हेतु भय या भव्यता ने हमारे जीवन को बरबाद कर दिया है । जब हम किसी से असंतुष्ट होते हैं तो खुले में अपनी भावनाओं को प्रकट करने से नहीं चूकते। हमारे रोजमर्रे के जीवन में कभी कभी हम यह भूल जाते हैं कि अगर हम दूसरों से नम्रता और शिष्टता दिखायें तो उनसे भी हम शिष्टता के व्यवहार की आशा कर सकते हैं । उदारहण के लिए मान लीजिये कि हम किसी से समय जानना चाहते हैं। हमारे पास घडी नहीं हैं। इसलिए दूसरों से हम पूछते हैं - समय क्या है ? शायद वह समय बतायेगा या नहीं । अगर हम यह पूछे - 'कृपया आप समय बता सकते हैं तो वह जरूर समय बतायेगा । कृपया' शब्द का असर आश्चर्यजनक होगा । दूसरोंके साथ विनम्र होने से हमारी बुराई तो नहीं होगी । बल्कि नम्रता से मैत्री बढ़ती है । इसलिये यह एक ऐसा गण है जिसे पाने के लिए सब को कोशिश करनी चाहिये।