पुरस्कार से तो खेल भला 
Puraskar se to Khel Bhala


खेल कूद मनुषय के लिए कई प्रकार से लाभदायक है। खेल शरीर की तन्दुरुस्ती के लिए अच्छा है । खेल एकता, भाई चारे की भावना आदि सद्गुण खिलाडियों में भरते हैं । सब से ज्यादा खेलकूद हमें हार या जीत दोनों को समान रूप से लेने का साहस सिखाता है । यही स्पोर्टस्मेनशिप की भावना है।


खेलकूद का सच्चा आनन्द उसमें भाग लेने में है। आजकल खेलकूद के माने कुछ बदल ही गये हैं। खिलाडी लोग खेल जीतने के ख्याल से तेलते हैं। अगर किसी देश का क्रिकेट या हाँकी या फुटबाल टीम जीत गयी तो देश के कोने कोने में उस टीम का सम्मान होता है, देश का सम्मान होता है । अगर टीम हार गयी तो उसको पूछनेवाला कोई नहीं, उल्टे उस टीम का खण्डन होता है । खण्डन व प्रशंसा पेंडुलम के दो सिरे होते हैं। ये भावनाएँ न केवल खिलाडियों में, बल्कि दर्शकों में भी हैं। ऐसी भावनाएँ कुछ हद तक छोडी जा सकती हैं।


खिलाडियों में ऐसी भावना के बदले भाईचारे की भावना, एकता की भावना, खेल में भाग लेने की भावना से भरे पूरे रहें तो अच्छा है । खद भी खेले और दूसरों को भी खेलने दे। इस तरह खेल में खेलने का आनन्द उठायें । हार या जीत से प्रभावित नहीं होना चाहिये । खेल के खतम होते ही दोनों टीमों के खिलाड़ियों को, खेल के नतीजे पर एक तरफ़ा नजर न रखकर, जीतनेवाले हारनेवालों से हाथ मिलायें, गले मिलें । यही खेल में भाग लेने का आनन्द है, खेल में भाग लेने का पुरस्कार यही है । यही खेल जीतने से बढ़कर है।