सांसारिक लोभ और मैं 

Sansarik Lobh aur Mein


आर्थिक माने में कुछ वस्तुएँ आवश्यकता की हैं और कुछ आराम और विलासिता की हैं। पहले जो चीजें आराम या विलासिता की मानी गयीं अब आवश्यकता की चीजे बन गयी हैं । यह तबादली व्यक्ति की निजी रुचि या लोगों के सामाजिक स्तर पर निर्भर करती हैं । जहाँतक मेरा सवाल है, यद्यापि मैं आयु में छोटा हूँ, तथापि मैं कुछ वस्तुओं के बिना रह सकता हूँ । एक विद्यार्थी के तौर पर पढाई मेरा पहला कर्तव्य है और मेरे माता पिता को संतुष्ट करना परम धर्म भी । दूसरे, मुझे ऐसा सर्वश्रेष्ट कार्य करके दिखाना है जो मेरे आगे के जीवन के लिए लाभदायक हो, और मेरे भविष्य के सुखी जीवन के लिए आधार शिला भी बने । ऐसे कहने से मेरे बारे में यह समझ न लेना कि मैं सर्वश्रेष्ट वस्तुओं का ही इच्छुक हूँ। मेरी इच्छा सिर्फ यही कि मेरा विद्यार्थी जीवन एक सफल आदर्श जीवन रहे और पढाई पूरी करने पर एक सहज, सरल, संतुष्ट जीवन में पदार्पण करूँ। अगर मैं अपनी इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति करना चाहूँ तो मुझे कुछ वस्तुओं को त्यागना चाहिये, कुछ वस्तुओं के बिना रहना चाहिये।

जब मैं यह कहूँ कि टेलिविशन जो बहुत से लोगों के लिए बहुत आवश्यक चीज है मेरे लिए एक आवश्यक वस्तु नहीं, बल्कि मैं उसके बिना रह सकता हूँ, तो आप सब को यह बडे विस्मय की बात होगी । यद्यापि टी.वी के कुछ कार्यक्रम बहुत रोचक और उपयोगी हैं, फिर भी टी. वी बहुत सी समस्यायें प्रस्तुत करती हैं । जब मेरे परिवार के सब लोग टी. वी के सामने बैठते हैं और छोटे पर्दे पर कुछ देखते हैं तो मैं उनके साथ बैठने की अपनी इच्छा को दबा नहीं सकता। लेकिन परिवार के लोगों के साथ टी.वी. देखने बैठता हूँ तो बार बार मेरे मन में अपने कर्तव्य से विमुख होने की बात रह रहकर खटकती है और टी.वी के कार्यक्रम में भी मन बेशेक लगा नहीं सकता । क्रिकेट से मेरा असीम प्रेम है और क्रिकेट अच्छा खेलता भी हूँ। फिर भी टी. वी में बार बार खेल कूद जगत के कार्यक्रम प्रसारित करने से मेरी पढ़ाई में बाधाएं पहंचती हैं। इसलिए मैं धैर्य के साथ कह सकता हूँ कि मैं टी वी के बिना ही काम चला सकता है। जब मेरे परिवार के दूसरे लोग टी. वी के सामने बैठते हैं तब मझे अपनी किताबों के साथ अकेले में बैठने नहीं देते।


आँखों को चौंधियाने वाले पोशाक के बिना सादे पोशाक से काम चला सकता हूँ। अमूल्य वस्तुएं सुन्दर न हों तो किसी को आकर्षित नहीं करती । हर घर में पत्र पत्रिकाओं की कमी नहीं है। उन पत्रिकाओं के बिना मैं अपना काम चला सकता हूँ। ये पत्र पत्रिकायें बहुत सस्ती बातें छापती हैं। जिनकी हमें आवश्यकता ही नहीं। संगीत भी एक ऐसी कला है जिसे मैं अपने जीवन का अंग बना लिया है। फिर भी दिल बहलाने की इन चीजों के बिना मैं रह सकता हूँ ।