सुनने से देखना भला
Sunne se Dekhna Bhala


उपर्युक्त कथन के माने यह नहीं कि अच्छा देखनेवाला आदमी एक बहरे से बढ़कर है । पढ़ाई का कार्य दो तरह से हो सकता है । एक तो लेक्चर सुनकर पढ़ सकता है । और दूसरा देखने से अपनी अनुभूति से पढ़ सकता है । जब कोई किसी आदमी, वस्तु या स्थान के बारे में लेक्यर या वर्णन सुनता है, उसके ज्ञान की वृद्धि अवश्य होती है । जब वही छात्र उसी आदमी, वस्तु या स्थान से आमने सामने हो जाय तो उस वस्तु या स्थान या व्यक्ति के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है। ताजमहल के बारे में लंबे चौडे भाषण सुनने के ज्यादा ताजमहल को चांदनी रात में खुद देखने से मिलनेवाले आनन्द की अनुभूति ही अच्छी है । जो आँखों से देखे जाते हैं, वे दिलो दिमाग में उनकी अमिट छाप छोड जाते हैं मानों फोटो प्रिंट हों। इसलिए जो विद्यार्थी ज्यादातर भ्रमण करते हैं. स्वयं उनसे मिलने का अनुभव उठाते हैं, वे लेक्चर सुनानेवाले छात्रों से कहीं बढ़कर हैं। दूसरे क्षेत्र के सारे लोगों को भी यह तथ्य लागू हो सकता है । अपने अनुभव और अनुभूति से बढ़कर कोई शिक्षक नहीं।