उपदेश देने से तो मिसाल भली 
Updesh Dene se to Misal Bhali

 

जीवन में आदर्श और व्यवहारिता में बहुत फासला है, उपदेश और व्यवहार में अन्तर है। गांधी जी जैसे महात्मा लोग ही जैसे दसरों को उपदेश देते हैं वैसे खुद भी करते हैं। उनके अलावा बहुत कम लोग ही जैसे उपदेश देते हैं वैसे ही करते हैं। सच मुच बहुत लोगों के लिए यह बहुत बडा मुश्किल काम है। अगर एक बाप अपने बेटे को यह उपदेश दे कि वह तड़के उठे और खुद देर से उठे, तो यह देखकर उसके बेटे को अपने बाप का उपदेश मानने का मन नहीं मानेगा। दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है, लेकिन स्वयं उसका पालन करना मुश्किल है। इसलिए कोई दूसरों को सुधारना चाहता है, तो स्वयं उसको उसका उदाहरण पेश करना चाहिये । कोई अनपढ होते हुए भी भला आदमी हो सकता है । वह कैसे भला है, स्वयं आदर्श बनकर दूसरों को भलमानसता सिखा सकता है। वह अपने भले होने की बात अपने मुंह से नहीं कहता, बल्कि अपने भले व्यवहार से भले होने का मिसाल पेश कर सकता है । इस तरह यही अच्छा है कि करके दिखाओ, न कि कहो, कहते रहो, कुछ न करो।