ईमानदारी का फल 
Imandari Ka Phal


एक लकड़हारा जंगल से नित्य लकड़ी काटकर लाता और उन्हें बेचकर अपना गुजारा करता । क दिन लकड़हारा नदी के किनारे लगे पेट से लकडी काट रहा था। अचानक कुल्हाड़ी हाथ से बटकर गहरी नदी में जा गिरी। निराश लकड़हारा पेट के नीचे बैठकर रोने लगा। आज लकड़ी लेकर वापस न लौटा तो परिवार का पेट कैसे भरेगा?


उस पेड़ पर एक देवता भी रहते थे। उन्हें उस गरीब लकडहारे की स्थिति देखकर दया आ गर्ट । उन्होंने उसकी सहायता करने का निश्चय किया। देवता नदी में उतरे और एक सोने की कुल्हाड़ी लाकर लकड़हारे को दी । लकड़हारे ने कहा, "यह मेरी नहीं है । वह तो लोहे की थी, वहीं चाहिए।"


देवता ने दूसरी डुबकी लगाई । अबकी बार वे चाँदी की कुल्हाड़ी लाए। उसे भी लकड़हारे ने वही उत्तर देकर वापस कर दिया । अंत में देवता लोहे की कुल्हाडी लेकर आए तो उसने उसे स्वीकार कर लिया और देवता को हार्दिक धन्यवाद दिया।


देवता भी लकड़हारे की ईमानदारी देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर उसे सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी भी उपहार के रूप में दे दी।