मूर्खों को उपदेश देना व्यर्थ है 
Murkho ko Updesh dena Vyarth hai


जंगल में बरगद का एक वृक्ष था । उस पर चिड़ियों के एक जोड़े ने घोंसला बनाया । वर्षा ऋतु बीत चुकी थी। शीत ऋतु आरंभ हो चुकी थी। अचानक एक दिन तेज वर्षा होने लगी । उस शीत से काँपता हुए एक बंदर उस पेड़ के नीचे आया।


बंदर को ठंड से काँपते हुए देखकर चिडिया बोली. "भाई, तुम्हारे हाथ-पैर भी हैं और तुम दिखते भी मनुष्य के समान हो, फिर अपना घर क्यों नहीं बना लेते ?" चिड़िया के वचनों को सुनकर बंदर को क्रोध आ गया और उसने चिड़िया से चुप रहने के लिए कहा । चिड़िया चुप हो गई परंतु बंदर का क्रोध शांत नहीं हुआ। वह पेड पर चढ़ गया और उसने चिडिया का घोसला तोड़ डाला।