दूब 
Doob



हमर चौक मा

नन्हीं सी दूब,

बड़ी खूब, लगदी सब तै।

जु बि घर आई,

वेनी वीक गुण गाई। 

गम्यूक दिन छ्याई,

भयानक झुलसाँद गर्मी पड़ी।

हवा भि छिपण कु ग्याई कखि दौड़ी।

बाग-बगीचा क्वी नि हर्र राई। 

तब भि या दूब हँसदी-खिल्दी ग्याई।


किलै कि वी ते ताड़-खजूरक तरां—

बड़प्पन कू अभिमान कबि नि ह्वाई। 

या सून्य से संज्ञक तरफ जाणी राई ।

एक भि वी ते ज्ञान नि छ्याई,

वा सदानि छुट्टि बणिक राई । 

ए बजह से वोक लम्बी उमर बाई ।