गाँधी ! त्यार देस मा 
Gandhi Tyara Desh Ma



आजक तारीख मा, 

धरम सिर्फ लूण छ। 


चटनी लूण, मसाला लूण, सादा लूण अर सेंधा लूण, 

दाल-सब्जी कुछ ना। 


दीवान पर बैठिक लूण-रुट्टी खाणू छौं, 

अर दिवार पर टॅकी तस्बीर तै तेरी बापू ! 

बार-बार माथा झुकाणू छौं । 


ए मा भि आत्मतोस-सन्तोस छ मीत, 

ये वास्ता, 

यों घोर गरीबी मा भि—

मी तेरी सवा सौवीं जयन्ती मनायूँ छौं । 


अच्छू करी तीन, 

जु 'नमक-सत्याग्रह' आन्दोलन चलाई । 


गरीबू त लूण बणाण सिखाई। 

तू भूख-प्यास, अद्दा नंग रैई। 

और कुण तीन क्य नि साई ?

मी भि त्यार चरण चिहन पर चन्नू छौं । 

ए बुरु वक्त कम से कम त्यार यु लूण त काम आई। 


तू बापू छ्याई हमरु, 

त्यार सुपिनुक भारत मा,

त्यार उत्तराधिकार मा, 

ए साहित्यकारन, 

कम से कम त्यार लूण त पाई ! 

गाँधी ! तीन यु कन्न देस बणाई ?