मेरी महत्वाकांक्षा
Meri Mahatvakangsha 



मी ए देस मा कुछ नि बण चाँदू । 

किलै कि, 

जै देस मा हजारों बच्चा, 

गाँव-गली, बाजार अर चौराह पर मजमा लगाँदन, 

लम्ब बाँस पर रीगिक, 

रस्सी पर चलिक, 

तमासू दिखाँदन, 

होटलू मा भाँड मंजाँदन, 

तब कखि पूटिगिक आग बुजाँदन, 

अर जै देसक नेता, 

सिर्फ वोट लेता, 

अपण भासण मा केवल आस्वासन लुटाँदन, 

अर सिसु वर्स मनाँदन, 

वे देस मा मेरी महत्वकांक्षा, 

कुछ नि बणी चाँदि । 

जै देस मा हजारौं नारी, 

अद्दा नंग राउन, 

भूख-प्यास ह्वाउन, 

बच्चौं तै दूदक बदल--

चौंलुक मांडू पिलाउन, 

सराबी-कबाबी, चरित्रहीन पुरुसुक दासी ह्वाउन, 

दैज कुण फुक्याउन, रोज पिट्याउन,

जखक किसान मजदूर जिंदगी से या ह्वाउन,,

अर ऊँक प्रतिनिधि सरकार, 

'गरीबी हटाओ' नारा लगैक, 

गरीबुक झुपड्यू पर बुल्डोजर फिराउन, 

गरीबिक बजाय, गरोव ते मिटाउन, 

अर मजदूर-महिला वर्स मनाउन, 

वे देस मा मी कुछ नि बण चाँदू । 

अथवा चैक भि उख कुछ नि बणी सक्याँद । 

उ के तै उन्नतिक मौका नि याद ।