प्रकृति पुत्र !
Prakriti Putra
हे प्रकृति पुत्र !
मी वक्त-वक्त,
त्यार सम्बन्ध मा सुचुणू रौंदू –
कि सैकड़ों सद्गुण ह क भि,
तू ए परदेस मा—
असोम पीड़ा क्यो कू झिन्न छै ?
जिंदगी मुस्किल से क्यो कू ठिन्न छै ?
यु दुर्भाग्य तीन अफु कुण अफिगी नि बुलाई,
थ्वापि छ, दे छ, यूँ परदेस्यून त्वै तै ।
तू जु बि करदू रे,
बुल्दू गे,
वेकू गलत अर्थ लगैए ग्याई।
कर्म तू त्र रदू गे अर फल क्वी और खाँदूं राई।
तू जंको भले कर दी।
दिन-रात मर दी।
वी त्वे कुण मौत बुलाँद ।
त्यार उपकारुन उ छुट्ट ह जाँद ।
जै पसु तै तीन घी पिलाई,
घास-पात खिलाई,
वी खै-पेक, सिंग पल क, त्वे तै मान्न कू आई।
हर क्वी तेरी खुसबू उडैक ली जाँद,
पास त्यार जु बि आंद,
वी त्वे तै दु:ख दे जाँद,
गौड़िक तरां पिजाँद ।
हे भाई! तू भि अपण सिंग हिला।
लात लगा, फण फैला।
चिंघाड लगा, दहाड़ लगा।
जनकैक भि हाऊ,
त दूर भगा।
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