प्रकृति
Prakriti
प्रकृति तै जु दीन-दुःख्यक –
आश्रय माना करदन ।
उ विदेसी बिचारक अपण—
अन्दर भ्रम ही भरदन ।।
कुदरत चिर सहचर अपणी,
वा जीवन दान दींद हम तै ।
पाँच तत्वों से निर्मित छ या,
क्यों कू सक-सन्देह छ तुम तै ?
रस-राग, विराग छ यी मा,
हवा पाणी, आग छ यो मा।
रत्नगर्भा नाम छ यी क,
जीवन कू हर साज छ यों मा ।।
अपणुं अन्दर कू मधुकोस,
कख खोली सकदू यू मानव,
रस-राग प्रकृति क लियाँ बिना
यू मानव केवल छ दानव ।।
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