औछी बात 
Ochi Baat



'अधजल गगरी छलकत जात। 

सब से जादा हम पर ही घटद या बात। 


हम बिना श्रम-कर्म करीक, 

भितर ई-आलस क मवाद भरीक, 

निठल्ला- निकम्म। रक, 

एक-दुसरक चुगली कैक, 

बीड़ी-सिगरेट अर सराब पेक,

दिनभर हक्का गुड़गुडेक, 

कुछ न हक, भि, 

नेता, अभिनेता, गीत-संगीत अर साहित्यकार, 

सब-कुछ एक साथ ह जाँदवाँ । 

तब हम अपण भौंडा प्रदर्सन ही त दिखादवाँ । 

हम पर अक्सर धन-संचय, आत्म-प्रदसन, आत्म विज्ञापन—

 कू भूत सवार रैद, 

यों दौड़-धूप कू पथर अपणू स्वार्थ रेंद। 

मन की भड़ास निकालदवा हम जख-तख, 

घबराहट-हडबड़ाहट क साथ, 

ओछी बात।