प्रस्न पूछदन लोग
Prashan Puchadan Log
मीत प्रस्न पूछदन लोग—
तू क्यो कू लिखदी?
जु लिखदी छे,
न उ छपुदू छ।
न क्वी वे तै पढ्दू छ।
ए से न त्वे ते ख्याति मोलि, न पुरस्कार ।
न सहानुभूति, न के कू प्यार ।
फिर भि लिखुणू छे लगातार ?
यूं लोगू ते मी पुछण चांदू —
सूर्य-चाँद दुनियक अंध्यरु मिटादन क्यो कुण?
ऋतु नै रूप मा आंदन, क्यो कुण?
बादल धरतिक प्यास बुझांदन, क्यो कुण ?
हिमालय ना ते जन्म दोंद, क्यो कुण?
पसु असीम पीड़ा सैक दुनिया ते दूध पिलाद, क्यो कुण?
पत्थर खैक भि डाल मिट्ठ फल खिलाँदन, क्यो कूण?
यु यूंक परोपकारी भाव छ।
स्वभाव छ।
अर ‘स्वभावो मूर्ध्नि वर्तते'।
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