बचपन की यादें
Bachpan Ki Yaadein
समय के पंख होते हैं। ये हमेशा तेजी से उड़ता है। बचपन की बातों को याद करना बहुत ही रोचक है। वे आनन्ददायी होने के साथ-साथ दु:ख भी देती हैं। मेरे बचपन की कई ऐसी घटनाएँ हैं जिन्हें मैं दोबारा जीना चाहता हूँ। परन्तु कुछ यादें ऐसी है जो दु:खदायी हैं। परन्तु मीठी यादें अधिक हैं।
अब मैं चौदह वर्ष का हूँ व युवा हो रहा हूँ। बचपन के दिन स्वतन्त्रता, आनन्द व मासूमियत भरे थे। वर्ड्सवर्थ ने कहा है कि हम भगवान् के घर से आए हैं और जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, मासूमियत व अच्छाइयों से दूर होते जाते हैं।
मुझे अभी भी अपने विद्यालय का पहला दिन याद है कि कैसे मेरे पिताजी मुझे स्कूल ले गए व मेरा प्रवेश किण्डरगार्डन में हुआ। वह दिन मेरे लिए विशेष था। उस दिन मेरी माँ ने मझे बड़ी अच्छी प्रकार से तैयार किया। मैं अपने नए स्कूल, अपनी नयी पोशाक, छोटे से बस्ते व टिफिन के साथ बहुत खुश हुआ। यह दिन आनन्ददायी व नए अनुभवों से युक्त था। मैंने स्कूल में अपने कुछ मित्र भी बनाए।
पहले हमारे घर में हमारी माताजी, मेरी छोटी बहन व मेरी दादी थीं। परन्तु मेरी दादीजी किसी बिमारी से ग्रसित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गईं, उस समय मैं केवल छह वर्ष का था। घर पर विलाप व दु:ख का माहौल फैल गया था। मैं एक कस्बे में पैदा हुआ था और मेरे पिताजी एक दूसरे शहर में नौकरी करते थे। वो सप्ताह में एक बार हमारे पास आते व हमारे लिए बहुत सारी वस्तुएँ भी शहर से ले के आते। जब मेरे पिताजी शहर से आते तो मैं बहुत खुश होता। क्योंकि हमारे पिताजी हमसे दूर रहते थे, इसलिए परिवार की देखभाल हमारी माताजी करती थीं। उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ता था। उन्हें आराम के लिए बहुत कम समय मिलता था। वह मुझे प्यार करती थीं, परन्तु शैतानी व गलत कार्य सहन नहीं करती थीं। शाम को वह परियों की कहानी सुनाया करती थीं।
मेरी छोटी बहन शरारती थी। मेरी बहन मुझे हमेशा परेशान करती थी, यदि मैं उसे कुछ मिठाई खाने को नहीं देता या उसे नई कविता नहीं सुनाता तो वह रूठ जाती थी। मेरी बहन और मैं एक-साथ खेलते, गाना गाते व मिठाई खाते थे, और स्कूल के पाठ तथा गृह-कार्य के अलावा कुछ भी गंभीर कार्य नहीं करते थे। एक बार मैंने अपने पड़ोसी के पेड़ से कुछ हरे आम चुराए। जब मेरी माँ को इसका पता चला तो उन्होंने मुझे डाँटा व पिटाई की। मैं रोया व चिल्लाया, उस समय मेरी बहन मेरे साथ थी। फिर दादीजी आईं और उन्होंने मुझे बचाया व मुझसे वचन लिया कि मैं ऐसी गलती दोबारा न करूँ।
मेरी दादीमाँ बहुत दयालु थीं। वो हमेशा मुझे पास के मन्दिर में ले जाती थीं जहाँ पर मन्दिर के पुजारी मुझे मिठाई देते थे।
करतब दिखाने वाले बाजीगर अक्सर हमारे कस्बे में आते थे और हमें कई प्रकार के तमाशे दिखाया करते थे। वे हमें बहुत अच्छे लगते थे।
एक बार जब मैं मलेरिया बुखार से पीड़ित हुआ उस समय मेरी स्थिति बहुत गम्भीर थी। मेरी स्थिति इतनी गंभीर थी कि मुझे शहर ले जाकर मेरा इलाज करवाना पड़ा, इसके पश्चात् मेरे स्वास्थ्य में सुधार हुआ। मेरे माता-पिता मेरे स्वास्थ्य में सुधार से खुश हुए। मेरे माता-पिता की प्रार्थना व डॉक्टर की सहायता से मुझे एक नया जीवन मिला।
ये मेरे बचपन की कुछ खट्टी-मीठी यादें थीं। इन बातों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में मिश्रित क्रिया-कलाप होते हैं। इसमें प्रसन्नता के साथ-साथ दु:ख व परेशानियाँ भी हैं। हमें उन्हें सहनशीलता व शान्ति के साथ स्वीकार करना चाहिए।
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