भारत में अन्धविश्वास 
Bharat mein Andhvishvas


अन्धविश्वास बहुत बुरा है क्योंकि इसकी जड़ें अज्ञानता में फैली होती हैं। यह हमारे भय, निराशा, असहायता व ज्ञान की कमी को दिखाता है। यह बहुत ही दुखद है कि बहुत से पढे-लिखे लोग भी अन्धविश्वासों में जकड़े होते हैं। इस ज्ञान और विज्ञान के युग में यह हमारी बौद्धिक निर्धनता को दिखाता है। यह मूर्खतापूर्ण है। जब इन्सान किसी बात को समझ नहीं पाता है, वह उस चीज़ के लिए अन्धविश्वासी हो जाता है। हम इन्हें दैवीय कारण समझकर इससे डरने लगते हैं।

बहुत से अंधविश्वास बहुत ही हास्यास्पद बन जाते हैं, जैसे कि 13 नम्बर से भय और जब कोई छींक दे तो यात्रा के लिए मत जाओ। इसी प्रकार बिल्ली के रास्ता काटने से उन्हें लगता है कि कुछ बुरा होने वाला है। उल्लू की आवाज़, व भेड़िए की आवाज़ सुनकर अनहोनी की आशंका करना, सब अंधविश्वास के कारण हैं। वह यह दिखाते हैं कि हम मानसिक स्तर पर आज भी आदिम युग में रह रहे हैं। पागलपन के लिए यह भी माना जाता है कि घोड़े की नाल को घर के दरवाज़ों पर लगा दिया जाए तो वह सौभाग्य का प्रतीक है। इन अन्धविश्वासों को मानना वास्तव में हास्यास्पद है।

अंधविश्वास किसी विशेष समाज और देश से नहीं जुड़े हैं बल्कि यह हर जगह पाए जाते हैं। अंधविश्वासियों में अधिकतर गरीब व अनपढ़ लोग हैं। हम वैज्ञानिक प्रवृति की सहायता से इस भय व दुर्भाग्य से बच सकते हैं। कारण व तथ्यों की मदद से सभी रहस्यों को सुलझाया जा सकता है। आज से कुछ शताब्दी पूर्व चेचक को भगवान् का कोप समझा जाता था। लेकिन मेडिकल विज्ञान की सहायता से इसे जड़ से खत्म कर दिया गया है। इसके लिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को धन्यवाद दिया जा सकता है।

कई बार ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि की खबर सुनाई देती है। यह कैसी मूर्खता है। यही अंधविश्वास हमें एक ही समय में हँसाने और रुलाने का कार्य करते हैं। यह बहुत ही भयानक होते हैं। इसका सुधार सिर्फ लोगों में शिक्षा व ज्ञान के प्रचार द्वारा किया जा सकता है।