मेरी नई अध्यापिका 
Meri Nayi Adhyapika


पिछले साल हमारी गणित की अध्यापिका श्रीमती जूलिका थीं। जो त्यागपत्र देकर लन्दन प्रस्थान कर गईं। वह हमारी कक्षा अध्यापिका भी थीं। उन्होंने कहा कि जल्दी ही एक नई अध्यापिका आ जाएँगी। यह हमारे लिए बहुत ही दु:खद था क्योंकि श्रीमती जूलिका को हम बहुत पसन्द करते थे।

श्रीमती जूलिका केवल हमारी कक्षा-अध्यापिका और गणित की अध्यापिका ही नहीं थीं, बल्कि वह हमारी मित्र और पथ-प्रदर्शिका भी थीं। वो हमें अपनी माँ जैसी लगती थीं। वह हमेशा पढ़ाई और दूसरे कार्य-कलापों में भी हमारी मदद करती थीं। वह हमारी व्यक्तिगत समस्याओं को भी सुलझाती थीं। उनका व्यवहार सभी के लिए बहुत ही विनम्र एवं परोपकारी था। वह मेरी प्रिय अध्यापिका थीं।

जब मैंने उन के बारे में सुना तो मुझे बहुत धक्का -सा लगा। एक दिन सोमवार की सुबह हमारी गणित की नई अध्यापिका क० अरूंधती आईं। वह देखने में बहुत ही सुन्दर, दयालु और बद्धिमान थीं। वह साड़ी से मेल खाते ब्लाउज में बहुत ही आकर्षक लग रही थीं।

वह बहुत ही पतली, लम्बी और स्फूर्तीवान' थीं। उन्होंने हम सब पर अपना अच्छा प्रभाव डाला। हमारे प्रधानाध्यापक उनका बाईं तरफ की कक्षा में परिचय करा रहे थे। उसके बाद उन्होंने विद्यार्थियों से उनका परिचय कराया और फिर वह नया पाठ पढ़ाने लगी। शुरूआत में वह बहुत कठोर थीं। लेकिन धीरे-धीरे हम आपस में एक-दूसरे को समझने लगे और धीरे-धीरे सब कुछ ठीक-ठाक चलने लगा; लेकिन वह श्रीमती जूलिका की तरह अच्छी व्याख्या नहीं कर पा रही थीं। जब वह आधुनिक शिक्षण पद्धति का प्रयोग करती थीं तब वह हमें अपनी बड़ी बहन

और मित्र के समान दिखती थीं। वह कठिन परिश्रम करने में विश्वास करती थीं और उन्होंने खुद को कठिन परिश्रमकर्ता साबित किया। उनके पढ़ाते समय किसी के भी हँसने-बोलने की हिम्मत नहीं होती थी।