रेलवे स्टेशन का दृश्य
Railway Station Ka Drishya
मैं पहली बार रेलवे स्टेशन अपने पिताजी के साथ कुछ साल पहले गया था। परन्तु उसके बारे में मुझे ज्यादा याद नहीं है। उसके पश्चात् मैं कई बार नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर गया। अभी हाल में मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया। मुझे वहाँ से अपने एक मित्र को लेना था। वो अगस्त क्रान्ति एक्सप्रेस द्वारा मुम्बई से आ रहा था। उसे स्टेशन पर सुबह 10.55 पर आना था।
मैं लगभग 10 बजे सुबह स्टेशन पहुँच गया। स्टेशन खचाखच भरा हुआ था। हर जगह भीड थी। लोग इधर-उधर आ-जा रहे थे। वहाँ पर कुली, फेरीवाले, रेलवे कर्मचारी, यात्री व टैक्सी और रिक्शा चालकों सहित भिखारी व अन्य लोग भी मौजूद थे। शोर वाकई में कानों को चुभने वाला था।
मैंने प्लेटफार्म टिकट खरीदा व स्टेशन में प्रवेश किया। स्टेशन के अन्दर और भी अधिक शोर था। वहाँ पर हर कोई अपनी आपाधापी में व्यस्त था। हर कोई जल्दी में था। हर व्यक्ति ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र में द्वीप हो। ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र में तूफान आया हो और सब-कुछ तितर-बितर हो गया हो।
रेलगाड़ियाँ आ-जा रही थीं। फेरीवाले अपनी आवाज़ की अधिकतम सीमा तक चीख रहे थे। जोर का शोर व रेलगाड़ियों की सीटी की आवाज़ असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर रही थी। रह-रहकर आने वाली व जाने वाली गाड़ियों के बारे में उद्घोषणा हो रही थी। यात्री गाड़ी को पकड़ने की जल्दी में थे। जबकि आने वाले यात्रियों को गाड़ी से उतरने की जल्दी थी। वहाँ पर बहुत अधिक खींचा-तानी थी। कुली यात्रियों का सामान लेकर जा रहे थे।
रेलवे कर्मचारी भी बहुत व्यस्त थे। वहाँ पर स्टेशन मास्टर, सहायक स्टेशन मास्टर, टिकट निरीक्षक, चौकीदार, इंजन-चालक व अन्य सभी व्यस्त थे। बाहरी फाटक पर टिकट-निरीक्षक बहुत व्यस्त थे। प्रतीक्षा-कक्ष अपनी क्षमताओं से अधिक भरे थे। ब्रेक वैन' डिब्बे में से सामान निकाला व रखा जा रहा था।
तभी प्लेटफार्म नम्बर एक पर राजधानी एक्सप्रेस आ गई। जब रेलगाड़ी चल ही रही थी, तभी मैंने अपने मित्र को डिब्बे के दरवाजे पर खड़े देखा और मैं तुरन्त उस तक पहुँच गया।
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