संसार क्षण-भंगुर है
Sansar Kshan-Bhangur Hai
यह संसार क्षण-भंगुर है। इसमें दुःख क्या और सुख क्या ? जो जिससे बनता है, वह उसी में लय हो जाता है-इसमें शोक और उद्वेग की क्या बात है ? यह संसार जल का बुबुदा है, फूटकर किसी रोज़ जल में ही मिल जायेगा, फूट जाने में ही बुबुदे की सार्थकता है। जो यह नहीं समझते, वे दया के पात्र हैं। रे मूर्ख लड़की, तू समझ। सब ब्रह्माण्ड ब्रह्मा का है और उसी में लीन हो जायेगा। इससे तू किसलिए व्यर्थ व्यथा सह रही है ? रेत का तेरा भाड़ क्षणिक था, क्षण में लुप्त हो गया, रेत में मिल गया। इस पर खेद मत कर, इससे शिक्षा ले। जिसने लात मारकर उसे तोड़ा है, वह तो परमात्मा का केवल साधन मात्र है। परमात्मा तुझे नवीन शिक्षा देना चाहते हैं। लड़की, तू मूर्ख क्यों बनती है ? परमात्मा की इस शिक्षा को समझ और परमात्मा तक पहुँचने का प्रयास कर।
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