आखर 
Aakhar



पोथी का आखर सब क्वी बांच दिन 

भाग का आखर कैन नी बांचि। 

अपणू लिख्यू मनखी, लिखद, मिटोन्द, 

लेख विधाता कू कैन मिटाई। 

पोथी.... 


मन की अभिलाषा, आकाश बेल 

दौड़दो रयो मनखी, लौपी नी साकी छौंपी नी सकी,

पोथी... 

ठाडा खड़ा छन बू असगार लेकी 

माया क पर्दा न आंखी छन बुझी-२, 

पोथी... 


चदरी बिटी भैर खुट्टा फैलैकि 

चलनी पर पाणी कैन लिजाई-२ 

पोथी.... 


मौल्यार रालो सदानी, बात झूठ 

बारा रितु बारी बारी आली, रितु आली जाली 

पोथी.... 


खोजदी रयूँ भैर त्वे तै सदानी 

मन का भीतर नी अपणा झाँकि नी अपणा झाँकि...पोथी 

रिट्दू रयो मनखी घट्ट का माफिक 

खाली छन द्वी हाथ, अब समझ ऽ 

आई हाँ अब समझ ऽ आई