बसंत
Basant
हिंवाली पाख्यूँ मा बसंत बौड़ि ऐगै।
धरती का ओर पोर पीलो रंग छै गे
लैया भी फूलि, राडू भी फूली
आरु, बेडू, तिमला, फ्यूँलड़ी भी फूली
आह धरती...2 ओहो धरती भी हैंसण लैगे
देखा, देखा, देखा, कनि स्वाणि ऋतु ऐगे
हिंवाली ......
डांडी काठ्यूँ मा मौल्यार ऐगे
सेंटूला चखुलौं न घोल सजै दे
आह पंछयूँ न ... ओहो पंछयूँ न कांठी गूंजै दे...
देखा ....
सभी डाली बोटी, हैरी भरी हवेगे
थथरान्दो यूंद अब भागण लैगे
आह चौक मा ....२ ओहो चौक मा झूमैलो लगिगे
देखा..
घर घर देयली फूल्लू न भ्वरीगे
कुंगलि हाथ्यूल फुलकंडी सजीगे
आह मौं की पंचमी-२
आह मौं की पंचमी बौड़ि ऐगे
देखा ....
हिंवाली पाख्यूं मा बसंत बौड़ी ऐगे।………………………………….2
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