बिधाता की देन 
Bidhata Ki Den



फूलों ते कैन हसणू सिखाई, मयाली धरती ऽ 

बणाय चखुला, सिंटलों, पछयूँ तै कैन, आगास मा उड़न सिखाय


कैका सहारा चलदो बथौं, गदनयूँ मां कनकै आई पाणी 

समय कू पहिया कू चलौंदा, बात य कैन नी जाणी 

रंगली पिंगली दुनिया बणाई, संसार कैन बणाय 

चखुलो ......


अगास नीलो किलै दिखेन्द, संमोदर किलै नी संमौद 

गाणीयूँ की गंगा बौगी बौगी की, हाथ किलै नी औन्द 

बीजों से कनके डाला बणिन, मनखी किलै ऽऽ बणाय 

चखुलो ......


रोणू अर हसणू कैन बताई, अर बताई या बात 

सूरज औन्द त दिन बोलदन, जान्दू त होन्दी रात 

सुख दुःख कैन सैण सिखाई, धीरज कैन दिलाया

चखुलो ......


पंच तत्वों से बणयूँ यू शरीर, प्राण बिना बेकार 

प्राण ही ईश्वर, प्राण आत्मा, प्राण ही सब आधार 

प्राणों तै सच्चो साथी मानीक प्राणों की सुणल्यावा पुकार 

चखुलो ..


इनै उनै किलै डबकणा छा, हाथ किलै मलणा छा 

अपणा भीतर खोजल्या यू तैं, भैर किलै हेरणा छा 

सच्चो गुरु विरला होन्दन, ऊँतै ही तुम खोजी ल्यावा 

चखुलो ....


सुख मा स्वीणा दुःख मा रोण मनखी ते कैन बताया 

ममत्याली जिकुड़ी कैन दे, कैन दे हमते यू ज्ञान 

भक्ति से खोजा यूँ प्रश्नों तैं ना मांगा क्वी प्रमाण 

तर्को का अगनै मिथ्या च दुनिया, मन तै किलै भरमाणा 

चखुली. ..