ना काटा न कटण द्यावा
Na Kata Na Katan Dyava
ना काटा न कटण द्यावा आज हमतें
हम पर भी ज्यू पराण च, तुम जनी।
कान्डू बैठदू (हाई) कर दिन .....
कखी चिरडू लगदू। आँसू ढोलदिन
हमारी जिकुड़ी की बांठी लगदिन किलैकैकी
हमारी जिकुड़ी पर कचकी लगदिन किलै
साग की सगोड़ी तभी तक राली
पुंगड़यू का तीर ढीस जब डाली हवाली
झुल्ला लत्ता कपड़ा हमतें भी चॅयें दिन, तुम जनी
चयेलू बथौं, मशीन खुज्येला
पाणी ही नी रालू, तब क्या जी करिल्या
यूं बत्तों नी सोचणां छयाँ, किलैकी
क्वी आग लगौन्द, सैरु जंगल फुकेन्द
क्वी कुड़ी बणौद, सैरु जंगल छपेन्द
हमारी पीड़ा तैं पीड़ा नी मनदिन किलैकैकी....
ना काटा न कटण..
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