जाण त हमतै पड़ीगे
Jaan ta Hamte Padige
जाण त हमतै पड़ीगे, तौं उंची डांडीयूं का पोर
सौंपी तुम तैं जाणा, ईं राज्य की हम डोर..
चखुली बणी की देखणू ऽ औला
पोथली बणी की याद दिलौला,
जख ल्वे पड़ी छौ हमारु, वीं जगह न विसरैयां ।
जाण……………………...
इन स्वाणी धरती स्वाणा छन त्यौहार,
इन भला मनखी, भला छन संस्कार,
धन्य हवेगी जूनी हमारी जौन पाई यख मा जनम
जाण ....
जनी एक वेकी लड़ी छै लड़ाई
तभी एक रैकी हमन राज्य पाई
देखणू च सैरु समाज, अपणू ना ठट्ठा लगयाँ
जाण ....
तुम बणी जावा जगदा छिल्ला
यख से हटावा गरीबी अशिक्षा
तभी होलू विकास हमारु ईं बात सब्यूँ समझावा।
जाण.....
अपणी ईं माटी कू तिलक लगावा,
पुरखों की थाती तें मिलीकी सम्भाला
अपणी बोली अपणी भाषा, अपणा बालों तें सिखावा
जाण…….
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