पहाड़ की नारी 
Pahad Ki Nari




बसग्याल बोण मा कटेदन 

रूड़ी सेरा मा कटेदन 

यूंद जंदरी मा कटेदन 

यू च पहाड़ की नारी कू जीवन 

रात काली, उठी की पीसदन 

रात काली, उठी की कुटदन 

धारा बटे गागर भ्वरी, मुंड मा लादिन, 

संब्यु त कलेऊ पकोदिन, 

यू च पहाड़ की नारी कू जीवन 

भली भली चीज अपणों तै सी देंदीदिन 

नखरी नखरी हो ज सी अफ तें रख लेन्दीन, 

संब्यू कू ज्यू बुझोदिन, 

यू च पहाड़ की नारी कू जीवन। 

सोना सी दिप-दिप उजली-उजली मुखड़ी 

दिवा की जोत जनी जूनी सी टुकड़ी 

धौली गंगा सी सरल च तैंकू चलन 

यू च पहाड़ की नारी कू जीवन