वू लड़दू रये
Vu Ladadu Raye
मांजी उरख्याला मा पीठू फटकाणी रै
व्यारी पुगड्यूँ मां धाणी कू जाणी रै
बाबा गोठ मा बखरा धिराणू रै
भै बैणां भैजीक आण की आस मा जगदा रयाँ
कि अचण चकी लडै पौड़ गे
छुटटी मा घौर औण का बदला
सीमा मा जाण पौड़ी गे
पैनी चिफली चाँठियूं मा, चढ़न को आदेश ह्वेगे
रात घनघोर, चारों तरफ तोप गोलों कू शोर
आंखा लग्याँ चोटी पर, सरकणा रैनी मठू-मठू
तभी लगी समणा खड़ी च मां,
फूलों कू हार व आरती कू थाल लेकी
एक टक देखी, हाँ मां ही च वा, भारत माँ
द्वी हाथ उठै की आशीर्वाद देंदी सी लगी
अपणा अन्तःस्थल मा समेटणू तें आतुर।
तभी निरभगी दुश्मन की गोली आई।
भूयां पौड़ी गे, लेकिन साहस नी छोड़ी
जब तक प्राण रै, माँ की मूर्ति मन मा बिठेकी
ऊ लड़दू रये लड़दू रये...... ।
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